हर फादर क्रिसमस पर ही जनमता है। पिताजी होते तो आज 25 दिसंबर को 89 पूरे कर लेते। वे पीएम नहीं बने। सीएम नहीं बने। पर जहां थे वहां अडिग रहे पहाड़ की तरह। पिताजी ने सिखाया था कि विनम्र बनो पर झुको नहीं। किसी के भी समक्ष नहीं। झुकना मनुष्यता के गिरने की निशानी है। पिता आज भले न हों पर ज़िंदा हैं उनकी यादें दिल और दिमाग में।
पिताजी ने ब्राह्मणी व्यवस्था पर हथौड़ा चलाते हुए 1947 में आज़ादी के मौके पर लिखा था-
मनई-मनई का भेद जहां वो भेद भेद हम पार जाब।
मर जाब अगर ईं रस्ता मा हम सातो पीढी तार जाब।
ऐसे मेरे पिता स्वर्गीय रामकिशोर शुक्ल की 90 वीं जयंती पर उनकी स्मृतियों को प्रणाम।
फेसबुक वाल पर शम्भू नाथ शुक्ला जी की वाल से साभार