गुजरात में गुप्तचर विभाग के पूर्व प्रमुख आईपीएस अफ़सर आरबी श्रीकुमार ने अपनी किताब ‘गुजरात: बिहाइंड द कर्टेन’ में कांग्रेस पर धर्मनिरपेक्षता का दिखावा करने का आरोप लगाया है, वहीं तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव की कार्यशैली की तारीफ भी की है.उन्होंने कांग्रेस पर नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ केस चलाने को लेकर अनिच्छुक होने के इल्ज़ाम भी लगाए हैं.
वह लिखते हैं, “2004 में केंद्र में कांग्रेस सरकार की वापसी ने दंगा पीड़ितों की उम्मीदें काफ़ी बढ़ा दी थीं, लेकिन यूपीए सरकार ने दंगों में प्रमुख भूमिका निभाने वाले संघ परिवार के लोगों की कानूनी जांच की सलाह भी नज़रअंदाज़ कर दी. मनमोहन सिंह ने भी इस मामले में कुछ नहीं किया.” श्रीकुमार ने एक जगह लिखा है, “दंगा पीड़ितों ने मुख्यमंत्री और नौकरशाही की भूमिका की जांच के लिए एक अलग न्यायिक आयोग बनाने की मांग की थी. चूंकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कुछ नहीं किया था, तो उनकी निष्क्रियता से चिढ़कर तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने गोधरा में ट्रेन अग्निकांड के पीछे के हालात की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग बनाया.” श्रीकुमार लिखते हैं कि कांग्रेस ने कभी उन पत्रों की प्रतियां जारी नहीं कीं, जो दंगों के बारे में तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भेजे थे.वो लिखते हैं, “मीडिया में ऐसी आशंकाएं जताई गईं कि इस कार्रवाई से सिख दंगों के दौरान ज्ञानी जैल सिंह और राजीव गांधी के बीच हुए पत्राचार की मांग हो सकती थी.”
गुजरात में फ़रवरी 2002 में गोधरा में एक ट्रेन में सवार 58 हिंदू कारसेवकों के आग में झुलस जाने के बाद राज्य में दंगे भड़के थे और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक एक हज़ार लोग मारे गए थे जिनमें अधिकतर मुसलमान थे. राज्य की तत्तकालीन मोदी सरकार पर दंगे रोकने में विफल रहने और मुसलमानों के जानमाल की रक्षा न करने के आरोप लगे थे.
श्रीकुमार ने गुजरात के कुछ वरिष्ठ नौकरशाहों और दो मुस्लिम आईपीएस अधिकारियों पर भी दंगाइयों के पक्ष में होने का आरोप लगाया है.उनके मुताबिक आईपीएस अधिकारी ख़ुर्शीद अहमद और एक अन्य अधिकारी ने नरोदा पाटिया के 500 मुसलमानों को दंगों के दौरान उनके ‘लिखित आदेश’ के बावजूद शरण मुहैया कराने में ढुलमुल रवैया अपनाने का आरोप लगाया है.श्रीकुमार यह भी लिखते हैं कि ख़ुर्शीद अहमद और उनकी आईएएस पत्नी शमीना हुसैन को बाद में बेहतर तैनाती और मेडल से नवाज़ा गया.श्रीकुमार कहते हैं कि पूर्व सीबीआई डायरेक्टर डॉ. आरके राघवन को एसआईटी का प्रमुख बनाया गया जिन्होंने गोधरा के बाद हुए दंगों में गुजरात के मुख्यमंत्री को किसी भी भूमिका से मुक्त कर दिया.