विधान सभा चुनाव समीक्षा- मेरठ की सात सीटें, कौन कितने पानी में ?
January 5, 2017
मेरठ, विधानसभा चुनावों का बिगुल बजते ही राजनीतिक दलों में खलबली मची हुई है। सभी पार्टियों की हार-जीत के आंकड़े जातीय समीकरण के आधार पर तय होंगे।
मेरठ जनपद की सातों विधानसभा सीटों का हाल ऐसा ही है। जाति और धर्म के आधार पर वोटों का बंटवारा ही हार-जीत का फैसला करेगा।
मेरठ शहर सीट मेरठ शहर सीट सांप्रदायिक आधार पर धु्रवीकरण होने पर ही भाजपा के खाते में गई है। जब-जब यहां पर भाजपा के वोट कटे हैं तो उसके प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा है। 2012 के चुनावों में यहां से भाजपा के डाॅ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने सपा के रफीक अंसारी को साढ़े छह हजार वोटों से हराकर जीत हासिल की थी। करीब सवा तीन लाख वोटरों वाली इस सीट पर मुस्लिम एक लाख से ज्यादा, वैश्य करीब 50 हजार, ब्राम्हण लगभग 30 हजार, दलित वोटर 25 हजार, त्यागी, 15 हजार समेत पंजाबी आदि बिरादरी के वोटर है। यहां पर मुस्लिम वोटरों का बंटवारा होने से ही भाजपा प्रत्याशी चुनाव जीत पाए।
मेरठ कैंट सीट इस सीट को भाजपा की सबसे मजबूत सीटों में माना जाता है, लेकिन 2012 के चुनावों में यहां से भाजपा के सत्यप्रकाश अग्रवाल केवल साढ़े तीन हजार वोटों के अंतर से अपनी सीट बचा पाए। 1989 से अपने कब्जे में रखने के कारण इस सीट पर भाजपा की प्रतिष्ठा फिर से दांव पर लग गई है। यहां पर करीब पौने चार लाख वोटरों में से 70 हजार वैश्य, 50 हजार पंजाबी, दलित 40 हजार, मुस्लिम 25 हजार, जाट 15 हजार समेत कई बिरादरियों की संख्या प्रभावी है। यहां से भाजपा के सत्यप्रकाश अग्रवाल चौथी बार टिकट हासिल करने के जुगाड़ में लगे हैं तो विरोधी खेमा उन्हें हटाने के प्रयास में है।
मेरठ दक्षिण सीट आधे से ज्यादा शहरी वोटरों वाली यह सीट 2012 के चुनावों में अस्तित्व में आई और पहली बार यहां पर वोट पड़े। भाजपा के रविंद्र भड़ाना ने यहां पर बसपा प्रत्याशी राशिद अखलाक को हराकर जीत हासिल की। इससे पहले खुद भाजपा के भीतर ही टिकट को लेकर घमासान मचा था। डाॅ. सोमेंद्र तोमर का टिकट काट कर रविंद्र भड़ाना को दिया गया था। करीब तीन लाख 65 हजार वोटरों वाली इस सीट पर सबसे ज्यादा मुस्लिम है। यहां पर भी मुस्लिमों के जातियों में बंटकर वोट देने के कारण भाजपा को जीत हासिल हुई। इस बार भाजपा के लिए मुश्किल पैदा हो गई है। इसके साथ ही गुर्जर 25 हजार, त्यागी 15 हजार, वैश्य 50 हजार, दलित 40 हजार, पंजाबी 10 हजार समेत कई बिरादरियों के मत निर्णायक है। यहां पर भाजपा के अलावा सभी पार्टियों में मुस्लिम प्रत्याशी को लेकर घमासान मचा है।
किठौर सीट इस सीट पर प्रदेश के श्रम मंत्री शाहिद मंजूर का दबदबा चला आ रहा है। वह फिर से चुनाव मैदान में उतरेंगे। भाजपा को इस सीट पर केवल एक बार 1996़ में रामकृष्ण वर्मा के रूप में जीत हासिल हुई। करीब साढ़े तीन लाख वोटरों वाली इस सीट पर सबसे ज्यादा मुस्लिम सवा लाख है, तो त्यागी 50 हजार, गुर्जर 40 हजार, ठाकुर 25 हजार, दलित 50 हजार, जाट 15 हजार समेत कई छोटी बिरादरी के वोटर भी निर्णायक है। सपा को शिकस्त देने के लिए भाजपा यहां से त्यागी या गुर्जर बिरादरी के प्रत्याशी उतारने पर विचार कर रही है। यहां पर जातीय समीकरणों पर ही हार-जीत का फैसला होगा।
हस्तिनापुर सीट- महाभारत की गाथा रही हस्तिनापुर की धरती पर फिर से चुनावी रणभेरी बज उठी है। जनपद की एकमात्र सुरक्षित सीट पर साढ़े तीन लाख मतदाता है। इनमें गुर्जर वोटरों की बहुतायत है। यहां पर गुर्जर 80 हजार, दलित 65 हजार, मुस्लिम 60 हजार, त्यागी 15 हजार, जाट 20 हजार के साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग की वोट भी बहुत है। यहां से सपा के प्रभुदयाल वाल्मीकि को शिकस्त देने के लिए बसपा के योगेश वर्मा अभी मैदान में है। भाजपा के कई दावेदार भी ताल ठोंक रहे हैं।
सरधना सीट मुजफ्फरनगर दंगों में चर्चित विधायक संगीत सोम के कारण यह सीट काफी हाॅट हो गई है। वह फिर से भाजपा के टिकट के प्रबल दावेदार है तो सपा से बगावत करने वाले अतुल प्रधान भी ताल ठोक रहे हैं। सवा तीन लाख वोटरों वाली इस सीट पर मुस्लिम सबसे ज्यादा करीब एक लाख है। इसके बाद दलित 50 हजार, ठाकुर 45 हजार, गुर्जर 35 हजार, जाट 25 हजार, सैनी 25 हजार समेत त्यागी-ब्राम्हण भी निर्णायक स्थिति में है। यहां पर जातिगत बंटवारे से ही इस बार भी हार-जीत तय होगी।
सिवालखास सीट 2012 के चुनावों में सुरक्षित से सामान्य सीट हुई सिवालखास पर जातिगत बंटवारे से ही हार-जीत तय होती आई है। करीब तीन लाख वोटरों वाली सिवालखास सीट पर सपा के गुलाम मोहम्मद विधायक है और इस बार भी ताल ठोक रहे हैं। यहां से जाट करीब 90 हजार, जाट 75 हजार, दलित 45 हजार, त्यागी-ब्राम्हण 50 हजार, अन्य पिछड़ा वर्ग 40 हजार वोटरों पर ही उम्मीदवार टिके हुए हैं। यहां से टिकट के सबसे ज्यादा ज्यादा दावेदार भाजपा से ही है। रालोद के नेताओं में भी घमासान मचा हुआ है।