लखनऊ, बहुजन समाज पार्टी की ओर से विधानसभा चुनाव को लेकर जारी प्रत्याशियों की सूची में सोशल इंजीनियरिंग का उसका फार्मूला साफ नजर आ रहा है। खास तौर से मुस्लिम वोट बैंक पर उसकी नजर है। पार्टी ने शुक्रवार को जो विधानसभा प्रत्याशियों की सूची जारी की है, उसमें 22 मुस्लिम प्रत्याशियों के नाम हैं। इससे पहले पार्टी ने गुरुवार को 36 मुस्लिम प्रत्याशी घोषित किए थे। इस तरह से पार्टी सुप्रीमो मायावती गुरुवार और शुक्रवार की लिस्ट को मिलाकर अब तक 58 मुस्लिमों को उम्मीदवार बना चुकी हैं। वहीं अब तक कुल 200 प्रत्याशियों की लिस्ट जारी हुई है। इससे पहले मायावती ने कहा था कि इस बार उनकी पार्टी 97 मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट देगी। इस तरह अभी 39 मुस्लिम प्रत्याशी घोषित होना बाकी है।
माना जा रहा है कि शनिवार को जारी होने वाली सूची में भी कुछ और मुस्लिम प्रत्याशियों के नाम होंगे। पार्टी ने अपनी दूसरी सूची में रामपुर से तनवीर अहमद खां, अमरोहा से नौशाद अली, सहसवान से अरशद अली, बिलसी से अली मुशर्रत अली बिट्टन, शेखूपुर से मोहम्मद रिजवान, बहेड़ी से नसीम अहमद, मीरगंज से सुलतान बेग, भोजीपुरा से सुलेमान बेग, बरेली शहर से इं अनीस अहमद, पीलीभीत से अरशद खां, शाहजहांपुर से मोहम्मद असलम खां, ददरौल से रिजवान अली, मोहम्मदी से दाऊद अहमद, सीतापुर से अशफाक खां, लहरपुर से जासमीर अंसारी, शाहाबाद से आसिफ खां, लखनऊ पश्चिम से अरमान खान, फर्रुखाबाद से मोहम्मद उमर खां, छिबरामऊ से ताहिर हुसैन सिद्दीकी, आर्यनगर से मोहम्मद अब्दुल हसीब, कानपुर कैंट से डॉ नसीम अहमद और बांगरमऊ से इरशाद खां को प्रत्याशी बनाया गया है। गौरतलब है कि प्रदेश में मुस्लिमों की जनसंख्या 19 फीसदी के करीब है। लगभग 140 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी 10 से 20 फीसदी तक है। 70 सीटों पर 20 से 30 फीसदी और 73 सीटों पर 30 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी है। जाहिर है मुस्लिम मतदाता 140 सीटों पर सीधा असर डालते हैं। यही वजह है कि सियासी दलों में चुनाव के समय मुस्लिम वोटरों को अपनी ओर खींचने की स्पर्धा होती है। अगर आंकड़े पर नजर डालें तो मुस्लिमों का रुझान धीरे-धीरे बसपा की तरफ बढ़ा है। वर्ष 2002 में बसपा को 09 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले थे, जबकि वर्ष 2007 के चुनाव में यह बढ़ कर 17 फीसदी हो गया। इसके बाद वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में हालांकि बसपा हार गई लेकिन उसे मिलने वाला मुस्लिम वोट 17 से बढ़ कर 20 प्रतिशत हो गया। यही वजह है कि मायावती इस बार मुस्लिम वोट बैंक के साथ सोशल इंजीनियरिंग के बलबूते यूपी में अपनी सत्ता वापसी की उम्मीद लगाये बैठी हैं।