मेरठ, गठबंधन को लेकर चल रहे शह और मात के खेल के बीच मेरठ की सातों विधानसभा सीट का समीकरण उलझ गया है। सपा-कांग्रेस और रालोद के गठबंधन की फांस ने मतदाताओं को भी पशोपेश में डाल दिया है। जबकि नामांकन दाखिल होने में अब केवल तीन दिन शेष बचे हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों में घमासान तेज होने के आसार हैं। यूपी में पहले चरण के लिए 11 फरवरी को वोट डाले जाएंगे, इसके लिए 17 जनवरी से नामांकन प्रक्रिया चल रही है, जो 24 जनवरी तक चलेगी। अभी तक राजनीतिक दलों के प्रत्याशी तय नहीं होने से सियासी समीकरण पूरी तरह से उलझे हुए हैं। पहले सपा-कांग्रेस गठबंधन के कारण प्रत्याशी तय नहीं हुए थे तो अब गठबंधन फंसने के बाद भी प्रत्याशी तय नहीं है। गठबंधन से रालोद को अलग करने के बाद से हालात जटिल हो गए हैं। अभी हार-जीत की तस्वीर भी उभरकर सामने नहीं आ रही। सभी दलों के पत्ते खुलने के बाद ही सियासी समीकरण साफ होंगे।
मेरठ शहर सीट यहां से भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डाॅ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी रिकाॅर्ड आठवीं बार चुनाव लड़ रहे हैं। मुस्लिम मतों के बंटवारे के बीच 2012 में वह केवल 6278 वोटों से ही चुनाव जीत पाए थे। उस समय सपा से रफीक अंसारी, बसपा से सलीम अंसारी और कांग्रेस से यूसुफ कुरैशी मैदान में थे। इस बार लक्ष्मीकांत का वोट बैंक काटने के लिए बसपा ने पंजाबी समाज से पंकज जौली को उतारा है तो सपा ने रफीक अंसारी को टिकट दिया है। रालोद और कांग्रेस का अभी कोई प्रत्याशी नहीं आने से हालात साफ नहीं है।
मेरठ कैंट सीट यहां से भाजपा के सत्यप्रकाश अग्रवाल तीन बार से विधायक है। 2012 के चुनाव में बमुश्किल 3613 वोटों से चुनाव जीतने वाले भाजपा प्रत्याशी को अभी तक पार्टी ने हरी झंडी नहीं दी है। बसपा से सत्येंद्र सोलंकी तो सपा से सरदार परविंदर ईशू को टिकट मिला है। कांग्रेस व रालोद से भी प्रत्याशी सामने नहीं आने से सियासी समीकरण उलझे हुए हैं।
मेरठ दक्षिण सीट 2012 में पहली बार बनी इस सीट पर भाजपा के रविंद्र भड़ाना 9784 मतों से चुनाव जीते थे। उस समय भी यहां पर तीन मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतरे थे। बसपा से राशिद अखलाक, कांग्रेस-रालोद से मंजूर सैफी, सपा से आदिल चौधरी के बीच वोट बंटे थे। इस बार भाजपा ने रविंद्र भड़ाना का टिकट काटकर डाॅ. सोमेंद्र तोमर को प्रत्याशी बनाया है तो सपा ने आदिल चौधरी व बसपा ने याकूब कुरैशी पर दांव खेला है। अभी कांग्रेस व रालोद प्रत्याशी सामने नहीं आने से समफ नहीं है।
सिवालखास सीट 2012 में सामान्य हुई इस सीट पर भाजपा ने रालोद नेता रहे जितेंद्र सतवाई को टिकट दिया है। भाजपा में इस सीट पर टिकट वितरण को लेकर बगावत की आग सुलगी हुई है। बसपा ने यहां से नदीम चौहान तो सपा ने मौजूदा विधायक गुलाम मोहम्मद को टिकट दिया है। कांग्रेस व रालोद के प्रत्याशी सामने नहीं आने से सियासी पेंच उलझा हुआ है।
सरधना सीट भाजपा के चर्चित विधायक संगीत सोमन ने 2012 में इस जीत पर कमल खिलाया था। वह यहां से 12274 मतों से चुनाव जीते थे। सपा ने यहां से अतुल प्रधान को फिर से प्रत्याशी बनाया है तो बसपा से इमरान याकूब मैदान में है। सपा और रालोद के प्रत्याशी सामने नहीं आने से समीकरण पूरी तरह से उलझे हुए हैं।
हस्तिनापुर सुरक्षित सीट 2012 में कांटे के मुकाबले में सपा के प्रभुदयाल वाल्मीकि ने यह सीट हासिल की। इस सीट पर बसपा ने योगेश वर्मा तो सपा ने प्रभुदयाल को फिर से टिकट दिया है। भाजपा ने दिनेश खटीक पर दांव लगाया है। कांग्रेस व रालोद ने अभी पत्ते नहीं खोले है।