नई दिल्ली, 1947 में भारत को आजादी मिलने के साथ ही वो दर्द भी मिला जो हमेंशा सालता रहता है। सिंधु सभ्यता के गौरवगाथा का गान करने वाले लोग दो अलग-अलग देशों के हिस्सा बन चुके थे। जो वर्षों तक एक दूसरे के हमराज थे वे खाटी दुश्मन बन गए। एक ऐसी दुश्मनी, जिसका इजहार हमारे पडो़सी मुल्क यानि पाकिस्तान के हुक्मरान करते रहते हैं। उन्हें कभी कश्मीर याद आता है तो कभी कच्छ का रन। लेकिन इन सबके बीच पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक तारिक फतेह का कहना है सांस्कृतिक समृद्धि से भरे हुए भारत का भविष्य उज्ज्वल है तो वहीं पाकिस्तान का न तो कोई वजूद था न ही रहेगा।
भारत की सांस्कृतिक विरासत पर बोलते हुए तारिक फतेह ने कहा ये मात्र एक ऐसी सभ्यता है जिसे विदेशी आक्रांताओं ने कई बार रौंदा। लेकिन थपेड़ों को सहते हुए भी ये देश उठ खड़ा हुआ। लेकिन इसके ठीक विपरीत पाकिस्तान दिमाग की उपज थी। सही मायनों में पाकिस्तान का अस्तित्व नहीं है। अपने तर्कों को साबित करने के लिए तारिक फतेह ने कहा कि जिस तरह से अफगानिस्तान में अफगान्स, कजाकिस्तान में कजाक और बलूचिस्तान में बलोच मिलते हैं तो क्या वैसे ही पाकिस्तान में भी पाक लोग मिलते हैं। तारिक फतेह ने कहा कि पाकिस्तान का अस्तित्व 1971 में खत्म हो गया था जब ज्यादातर लोगों ने बांग्लादेश को अपना अलग देश माना। उन्होंने कहा कि एक तरफ भारत है जिसका पांच हजार साल पुराना इतिहास है, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान है जिसकी बुनियाद में नफरत है।
तारिक फतेह ने कहा कि पाकिस्तान जिहादियों का अड्डा है। पाकिस्तान में ज्यादातर लोग हिंदुओं के प्रति घृणा का भाव रखते हैं। मशहूर शायर अल्लामा इकबाल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इकबाल के पूर्वज हिंदू थे लेकिन वो खुद हिंदुओं से नफरत करते थे। इकबाल के साहित्य में आप हिंदुओं के प्रति नफरत को साफ तौर पर देख सकते हैं। उन्होंने कहा कि वो तो उन हिंदुओं को बेवकूफ मानते हैं जो इकबाल की सराहना करते नहीं थकते हैं।