नई दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में पिछले दो वर्षों में मंत्रियों द्वारा संसद में दिए गए आश्वासनों में से महज एक तिहाई ही अमल में लाए गए। जबकि लगभग 20 फीसदी पर अमल नहीं किया गया।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक मंत्रियों ने पिछले दो वर्ष (2015 और 2016) में 1,877 आश्वासन दिए लेकिन उनमें से केवल 552 पर ही अमल किया गया। वहीं, 392 आश्वासनों पर अमल नहीं किया गया। 893 आश्वासन अभी भी लंबित हैं। आश्वासनों को अमल में लाना प्रारंभिक रूप से संबद्ध मंत्रालयों या विभागों की जिम्मेदारी होती है।
हालांकि मंत्रालय व्यक्तिगत आश्वासनों पर कार्रवाई नहीं करते हैं। प्रत्येक आश्वासन के सार को आगे बढ़ाते समय मंत्रालय सूचित करता है कि आश्वासन को इसका सुझाव दिए जाने की तारीख से तीन महीने के भीतर पूरा कर लिया जाएगा और समय सीमा का कड़ाई से पालन किया जाएगा। लंबित आश्वासनों की स्थिति की समीक्षा करने के लिए संसदीय मामलों का मंत्रालय समय-समय पर विभिन्न मंत्रालयों के अधिकारियों या विभागों के साथ बैठकें करता है और आश्वासनों के क्रियान्वयन में तेजी लाने पर विचार करता है। इसके अलावा सरकारी आश्वासनों के लिए भी लोकसभा में 15 सदस्यों की स्थायी समिति होती है। यह समिति उन आश्वासनों पर नजर रखती है जिन्हें पूरा नहीं किया गया, इसके लिए वह मंत्रालयों के अधिकारियों को अपने समक्ष पेश होने को कहती है।