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तमिलनाडु- नए मुख्यमंत्री पलानीसामी पर डोरे डालने में जुटी भाजपा

tamil-Cm-1-580x395नई दिल्ली/बेंगलुरु, तमिलनाडु में सियासी संकट दूर होते ही भारतीय जनता पार्टी ने नए मुख्यमंत्री ई पलानीसामी पर डोरे डालने की तैयारियों में जुट गई है। भाजपा इस बात को भली प्रकार जानती है कि पलानीसामी एक बंटे हुए अन्नाद्रमुक पार्टी की सरकार की अगुआई करेंगे, जिसकी डोर जेल में बैठीं शशिकला के हाथों में होंगी, और फिलहाल यह भी साफ नजर आता है कि सीएम के पक्ष में खड़े विधायकों के संख्याबल के आधार पर शशिकला धड़ा ही विजेता है। पन्नीरसेल्वम ने शशिकला के अन्नाद्रमुक पर प्रभाव को कमतर करके आंका। सूबे की नई सरकार को राजनीतिक जमीन पर पैर जमाने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि शशिकला कैसे अपने कुछ रिश्तेदारों और वफादारों के जरिए सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखेंगी।

पन्नीरसेल्वम की द्रमुक और कांग्रेस के साथ नजदीकियां बढ़ने की आशंकाओं से भाजपा की चिंताएं बढ़ी हुई हैं। भाजपा नेताओं को लगता है कि इस तरह के राजनीतिक हालात उनके लिए सही नहीं हैं। इससे राज्य में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ेगी और जल्द चुनाव होना भी मुमकिन है। भाजपा नहीं चाहती कि ऐसा कुछ हो। भाजपा सूत्रों का कहना है, पार्टी को फिलहाल इस बात का ठीक-ठीक अंदाजा नहीं है कि पलानीसामी कैसे काम करेंगे और उनकी सरकार पर शशिकला का नियंत्रण किस तरह से होगा। मुमकिन है कि जेल में बंद शशिकला कुछ वक्त लें और सोच-समझकर कदम उठाएं। हालांकि, अगर तमिलनाडु सरकार संतुलित ढंग से काम करने में कामयाब रहती है तो भाजपा के लिए यह राहत की बात होगी। वह आने वाले राष्ट्रपति चुनाव और संसद में पास होने वाले अहम बिलों के मद्देनजर अन्नाद्रमुक से समर्थन की अपेक्षा रखेगी। आधिकारिक तौर पर भाजपा ने कहा है कि पलानीसामी के सीएम पद की शपथ लेना और तमिलनाडु का राजनीतिक घटनाक्रम पूरी तरह से अन्नाद्रमुक का अंदरूनी मामला है। भाजपा के मुताबिक, वह सिर्फ राज्य में स्थिर सरकार चाहती है। भाजपा प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने कहा, ‘यह अन्नाद्रमुक का अंदरूनी मामला है। वह जिसे भी राज्य का सीएम बनाना चाहें यह भी उनका मामला है। भाजपा और केंद्र की ओर से इसमें निभाने लायक कोई भूमिका नहीं है।’ शशिकला की पार्टी पर पकड़ कितनी रह पाती है, इस बात का ठीक-ठीक अंदाजा लगा पाना फिलहाल मुश्किल है। हालांकि, यह तो साफ है कि कोर्ट के फैसले ने उनके चुनावी सियासत पर एक दशक का ग्रहण लगाते हुए उनकी शक्तियां सीमित कर दी हैं। उन्हें कानूनी राहत भी मिलने की कम उम्मीद है। अगर वह कोर्ट के फैसले के खिलाफ क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करती हैं तो इस बात की उम्मीद बेहद कम है कि सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले को पलट दे।

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