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दलित छात्र उत्पीड़न रोकने के लिए, थोराट समिति की सिफारिशें लागू हों

dalit1_1442302430नयी दिल्ली ,  दलित बुद्धिजीवियों एवं शिक्षाविदों ने जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय में इतिहास के एमफिल छात्र जे मुथुकृष्णन की कथित आत्महत्या को देखते हुए देश के सभी विश्वविद्यालयों में दलित छात्रों के उत्पीड़न को रोकने के लिए थोराट समिति कि सिफारिशों को लागू करने के लिए शिकायत प्रकोष्ठ गठित करने एवं एक हेल्पलाइन शुरू करने की सरकार से मांग की है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज, रामजस कॉलेज,  जामिया मिल्लिया इस्लामिया तथा दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से जुड़े इन बुद्धिजीवियों ने आज  दलित उत्पीड़न एवं संस्थानिक हत्या विषय पर आयोजित एक प्रेस वार्ता में यह मांग की। इस प्रेस वार्ता को जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हिन्दी विभाग की अध्यक्ष डॉण् हेमलता महिश्वर दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में समाज विज्ञान की प्रोफेसर नंदिनी सुन्दर,  हिन्दू काॅलेज में इतिहास के शिक्षक डॉ0 रतनलाल, रामजस काॅलेज के हंसराज सुमन, दलित कार्यकर्त्ता एवं लेखिका अनीता भारती एवं पत्रकार अनिल चमडिया ने संबोधित किया।

सभी वक्ताओं ने आरोप लगाया कि देश के विश्विद्यालयों में दलित छात्रों के साथ उत्पीड़न होता है तथा भेदभाव होता है जिसके कारण रोहित वेमुला और मुथुकृष्णन जैसे प्रतिभाशाली छात्र आत्महत्या कर रहे हैं और यह एक तरह की संस्थानिक आत्महत्या है जिसके लिए विश्वविद्यालय का माहौल तथा प्रशासन जिम्मेदार है लेकिन इन छात्रों को न्याय नहीं मिलता है।
वक्ताओं का कहना है कि विश्विद्यालय अनुदान आयोग के पूर्वाध्यक्ष एवं प्रसिद्ध अर्थशास्त्री सुखदेव थोराट की अध्यक्षता में गठित समिति ने दलित छात्रों के साथ भेदभाव को रोकने के लिए 2011 में सरकार को सिफारिशें की थी लेकिन आज तक उन्हें लागू नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि संसद में भी यह मामला उठा और संसदीय समिति ने भी इसके लिए परिपत्र जारी किये। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने भी देश के 600 विश्वविद्यालयों को परिपत्र जारी किये पर आज तक ये सिफारिशें लागू नहीं की गयी। अधिकतर विश्वविद्यालयों ने आयोग को यह जवाब दिया कि उनके यहाँ दलित छात्रों के साथ कोई भेदभाव होता ही नहीं।
वक्ताओं ने आरोप लगाया कि दलित छात्रों के दाखिले से लेकर नौकरियों में इंटरव्यू में भी भेदभाव किया जाता है तथा उन्हें पिछले दो साल से राजीव गांधी फ़ेलोशिप नहीं मिल रही है लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं होती है। ये छात्र अपनी प्रतिभा के बदौलत दूर दराज़ इलाकों से संघर्ष करके केन्द्रीय विश्विद्यालयों में और राजधानी में पढने आते हैं लेकिन उन्हें हतोत्साहित किया जाता है और भेदभाव किया जाता है जिसके कारण न्याय न मिलने पर वे आत्महत्या कर लेते हैं।

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