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सिर पर मैला ढोने वालों के पुनर्वास का, एक पैसा भी नहीं हुआ इस्तेमाल

नयी दिल्ली,  संसद की एक समिति ने सिर पर मैला ढोने की अमानवीय प्रथा में लगे लोगों के पुनर्वास के लिए पिछले तीन साल में स्वरोजगार योजना की दस हजार करोड़ से ज्यादा राशि का एक भी पैसा खर्च न होने के लिए राज्य सरकारों की खिंचाई की है।

सामाजिक न्याय एव आधिकारिता मंत्रालय की स्थायी समिति ने बीते सत्र में पेश अपनी रिपोर्ट में पाया कि सिर पर मैला ढोने वालों को स्वरोजगार देकर उनका पुनर्वास करके इस अमानवीय पेशे से मुक्ति दिलाने के मकसद से तैयार की गयी केंद्रीय योजना के तहत वर्ष 2014-15 से लेकर 2016-17 के दौरान कुल 1131. 20 करोड़ रुपये की राशि जारी की गयी लेकिन इन तीन वर्ष में इसमें से एक पैसे का भी इस्तेमाल नहीं किया गया। इसका मुख्य कारण यह था कि राज्य सरकारों की ओर से इस योजना का प्रस्ताव मंत्रालय को नहीं मिला।

समिति ने राज्य सरकारों की ओर से इस काम में लगे लोगों के किये गये सर्वेक्षण की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब देश में अस्वच्छ शौचालयों की संख्या 26 लाख है तो इनकी सफाई में लगे लोगों की तादाद मात्र 12757 कैसे है ।
समिति ने अपनी तहकीकात में पाया कि राज्य सरकारें न सिर्फ इस काम में लगे लोगों के सर्वेक्षण का काम धीमी गति से कर रही हैं बल्कि जिन लोगों की पहचान हो गयी है उनका ब्योरा भी वेबसाइट पर नहीं डाला गया जबकि पुनर्वास की राशि देने के लिए यह प्रक्रिया अनिवार्य है।

यह प्रथा समाप्त करने के लिए 2013 में लागू सिर पर मैला ढोने के पेशे पर प्रतिबंध एवं पुनर्वास कानून के तहत अस्वच्छ शौचालयों और उनकी सफाई करने वालों लोगों के सर्वेक्षण का काम 20 फरवरी 2014 तक पूरा हो जाना चाहिए था लेकिन अभी तक सिर्फ 13 राज्यों ने सर्वेक्षण का काम पूरा किया है और 12737लोगों की पहचान की है जबकि 16 अन्य राज्यों का कहना था कि उनके यहां एक भी व्यक्ति इस काम में नहीं लगा है।