हर एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति को अब सरकारी एड्स स्वास्थ्य सेवा केंद्रों से निःशुल्क एंटिरेटरोवाइरल दवा मिलेगी। अभी तक सिर्फ उन एचआईवी पॉजिटिव लोगों को निःशुल्क दवा मिलती थी जिनका सीडी4 जांच 500 से कम होती थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो 2015 में ही वैज्ञानिक प्रमाण को देखते हुए यह निर्णय ले लिया था कि हर एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति को एंटिरेटरोवाइरल दवा मिलनी चाहिए और एआरटी दवा मिलना सीडी4 जांच पर निर्भर नहीं होना चाहिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सभी एचआईवी पॉजिटिव लोगों को एंटिरेटरोवाइरल दवा देने का निर्णय इसलिए लिया क्योंकि विश्व के सबसे बड़े वैज्ञानिक शोध ने यह ठोस रूप से सिद्ध कर दिया कि यदि एचआईवी जांच के तुरंत बाद एंटिरेटरोवाइरल दवा देने से अनेक जन स्वास्थ्य फायदे होते हैं जिनमें यह प्रमुख हैंः -एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति अधिक स्वस्थ रहता है और सामान्य रूप से जीवन यापन कर सकता है -यदि वो दवा नियमित ले और उसका वाइरल लोड नगण्य रहे तो उससे किसी अन्य को एचआईवी संक्रमण फैलने का ख़तरा भी लगभग नगण्य रहता हैः यानि एचआईवी संक्रमण फैलने पर भी विराम लगता है और एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति स्वस्थ भी रहता है और सामान्य जीवनयापन करता है
एंटिरेटरोवाइरल दवा नियमित लेने से और वाइरल लोड नगण्य रखने से एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति न सिर्फ स्वस्थ रहता है बल्कि उसका जीवनकाल भी सामान्य रहता है और एचआईवी के कारण बीमार या मृत होने की सम्भावना नगण्य रहती है।
अवसरवादी संक्रमण जैसे कि टीबी आदि होने का ख़तरा भी अत्यंत कम रहता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मार्गदर्शिका 2015 के 2 साल के बाद आख़िरकार भारत सरकार ने भी सभी एचआईवी पॉजिटिव लोगों को एंटिरेटरोवाइरल दवा देने की घोषणा की जो अत्यंत महत्वपूर्ण है और 2030 तक एड्स उन्मूलन के सरकारी वायदे को पूरा करने में सहायक हो सकती है। 2030 तक एड्स उन्मूलन का मायने क्या है? कोई नया व्यक्ति एचआईवी से संक्रमित न हो जितने भी लोग एचआईवी पॉजिटिव हैं उनको एंटिरेटरोवाइरल दवा मिल रही हो, उनका वाइरल लोड सरलतापूर्वक लगातार नगण्य रहे और वे स्वस्थ और सामान्य जीवनयापन कर रहे हों।
फिलहाल भारत में 21 लाख एचआईवी पॉजिटिव लोग हैं जिनमें से आधे लोगों को ही एंटिरेटरोवाइरल दवा मिल रही है। बाकी के 11 लाख लोगों को चिन्हित करना एक बड़ी चुनौती है। सीएनएस की अध्यक्ष शोभा शुक्ला ने कहा कि इन 11 लाख लोगों को बिना विलम्ब एचआईवी जांच मिलनी चाहिए, जिससे कि उन्हें स्वयं को एचआईवी होने की जानकारी हो, और वे अपना यथासंभव ख़याल रख सकें, और स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा सकें। यदि वे एंटिरेटरोवाइरल दवा लेंगे तो अनेक लाभ हैंः वे स्वस्थ रह कर सामान्य जीवनयापन कर सकते हैं और संक्रमण फैलने पर भी रोक लगेगा।
जिन 10 लाख लोगों को वर्तमान में एंटिरेटरोवाइरल दवा मिल रही है उनकी नियमित वाइरल लोड जांच होनी चाहिए जिससे कि यह पक्का पता चले कि एंटिरेटरोवाइरल दवा उनपर असरकारी है । वाइरल लोड जांच से समय रहते पता लग जाता है कि दवा से प्रतिरोधकता आदि समस्या तो नहीं हो रही और उसका स्थिति बिगड़ने से पहले निदान हो सकता है। पर भारत में वर्तमान में 20000 वाइरल लोड जांच सालाना होती हैं। यदि 21 लाख लोगों को एंटिरेटरोवाइरल दवा मिले और उनकी वाइरल लोड जांच साल में दो बार हो तो फिर भारत में हर साल 42 लाख वाइरल लोड जांच करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए।
कौशल विकास मंत्रालय संभवतः इस दिशा में स्वास्थ्य मंत्रालय की मदद कर सकता है कि मशीने भी हों और कौशल युक्त प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी भी। टीबी उन्मूलन के लिये भी जरुरी है कि एचआईवी पोसिटिव लोग स्वस्थ रहें भारत सरकार ने सितम्बर 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अन्य सरकारों के साथ 2030 तक सतत विकास लक्ष्य पूरे करने का वादा किया है। भारत की 2017 राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के लक्ष्य भी हमें बाध्य करते हैं कि हम एड्स उन्मूलन की ओर ठोस क़दम उठाएं और स्वास्थ्य प्रणाली को सशक्त करें। आशा परिवार के स्वास्थ्य को वोट अभियान के निदेशक राहुल द्विवेदी ने कहा कि भारत सरकार का वादा है कि 2025 तक टीबी उन्मूलन का सपना साकार होगा पर टीबी तो एचआईवी से ग्रसित लोगों की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। जब तक एचआईवी पोसिटिव लोग स्वस्थ नहीं रहेंगे और टीबी मुक्त नहीं रहेंगे तब तक भारत में टीबी उन्मूलन का सपना साकार कैसे होगा?
सबको एआरटी दवा देने के फैसले का एड्स सोसाइटी ऑफ इंडिया ने किया स्वागत 31 साल पहले जब भारत में पहला एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति चिन्हित हुआ तब जो देश के चंद चिकित्सक सेवा प्रदान करने के लिए आगे बढ़ कर आए उनमें प्रमुख थेः डॉ ईश्वर गिलाडा। डॉ गिलाडा वर्तमान में एड्स सोसाइटी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। एड्स सोसाइटी ऑफ इंडिया, भारत में एड्स चिकित्सकों और विशेषज्ञों का राष्ट्रीय समूह है। डॉ गिलाडा ने भारत सरकार के फैसले का स्वागत किया कि एचआईवी के साथ जीवित सभी लोगों को जीवनरक्षक एआरटी दवा मिलनी चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस दिशा में जबसे विश्वव्यापी मार्गदर्शिका जारी की, डॉ गिलाडा और एड्स सोसाइटी ऑफ इंडिया भारत में इसको लागू करने की मांग करते आये हैं।
डॉ इश्वर गिलाडा ने कहा कि एड्स सोसाइटी ऑफ इंडिया का आगामी राष्ट्रीय अधिवेशन जो हैदराबाद में अक्टूबर में होना निश्चित है, वो एक बड़ा मौका है जब वायरल लोड टेस्ट करने का प्रशिक्षण और चेतना एड्स विशेषज्ञों में प्रसारित की जाए। देरी न हो वैज्ञानिक शोध का लाभ धूमिल हो जाता है यदि उसको जरूरतमंद लोगों तक पहुचाने में देरी हो। उदहारण के रूप में महिला कंडोम यूएस ऍफडीए ने 1993 में पारित किया पर आज तक सभी जरूरतमंद महिलाओं तक नहीं पहुंचा जिससे कि अनचाहे गर्भ, यौन रोग और एचआईवी से वो बच सकें। ऐसे अनेक उदहारण हैं जब वैज्ञानिक शोध और ठोस प्रमाण के सालों बाद उसका जन स्वास्थ्य लाभ मिलना आरंभ होता है। यह देरी अनुचित है और अनैतिक भी। हमें हर प्रयास करना चाहिए कि वैज्ञानिक उपलब्धियों को जन-स्वास्थ्य उपलब्धियों में शीघ्र तब्दील करें।