लोकसभा चुनाव के लिए अखिलेश यादव ने लिया बड़ा फैसला, बैठक मे हुये ये निर्णय…
January 8, 2018
लखनऊ, लोकसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने बड़ा फैसला लिया है।समाजवादी पार्टी अब नई रणनीति के साथ चुनाव मे उतरेगी।
2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी को लेकर समाजवादी पार्टी ने आज लखनऊ के पार्टी कार्यालय में अहम बैठक बुलाई। जिसमे प्रदेश की सभी 403 विधानसभा सीटों से पार्टी नेता शामिल हुये। बैठक में प्रदेश भर के पार्टी जिला अध्यक्ष और विधानसभा चुनाव में जीते हुई विधायक और हारे हुई प्रत्याशी भी आये।
समाजवादी पार्टी की यह बैठक एक तरह से 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी बैठक रही। सपा के वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी कार्यकर्ताओं से क्षेत्र के सियासी माहौल को समझने की कोशिश की। समाजवादी पार्टी के राष्ट्री्य अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने विधायकों व विधानसभा चुनाव प्रत्याशियों से सियासी हालात का फीडबैक लिया। उन्होने बैठक में बिजली दरों में बेतहाशा वृद्घि, आलू किसानों की बदहाली, कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों पर चर्चा कर आंदोलन की रणनीति बनाने पर भी विचार किया।
अखिलेश यादव ने सदस्यों से अपने क्षेत्र के लोकसभा प्रत्याशियों के संबंध मे राय मांगी। प्रोफेसर राम गोपाल यादव ने अच्छे लोकसभा प्रत्याशियों के चयन के लिये सर्वे कराने का फैसला लिया।खास बात यह रही कि बैठक मे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए छोड़ी गई सीटों से भी पार्टी नेताओं को बैठक में बुलाया गया और उनसे संभावित प्रत्याशियों के संबंध मे राय मांगी गई। इससे साफ है कि सपा फिलहाल सूबे की सभी 80 लोकसभा सीटों पर चुनावी तैयारी में जुट गई है।इसके अलावा जो सीटें गठबंधन की वजह से कांग्रेस के लिए छोड़ दी गई थीं, वहां से भी सपा उम्मीदवारों का चयन कर रही है।
उत्तर प्रदेश का 2017 का विधानसभा चुनाव सपा और कांग्रेस से मिलकर लड़ा था। चुनाव में सपा और कांग्रेस दोनों को करारी हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव ने पार्टी की हार के लिए कांग्रेस से दोस्ती को जिम्मेदार ठहराया था। हालांकि अखिलेश यादव अब तक 2019 के लोकसभा चुनाव में एक बड़े गठबंधन के साथ उतरने की बात खुले दिल से कहते रहे हैं।
अखिलेश यादव की EVM बैठक को फूलपुर और गोरखपुर में साझा उम्मीदवार उतारने के एक लिटमस टेस्ट के तौर पर भी देखा जा रहा था। क्योंकि शुरू से ही इन दोनों सीटों पर साझा उम्मीदवार उतारे जाने की बात उठती रही है। लेकिन इस में कांग्रेस और बसपा जैसे दल शामिल नहीं हुए, जिससे ये बैठक फीकी रही। इससे साझा उम्मीदवार के उतारे जाने को भी बड़ा झटका लगा है, जो लोकसभा चुनाव के लिये भी महागठबंधन के भविष्य को लेकर संकेत दे रहा है।