दलितों-पिछड़ों का बीजेपी से मोह भंग, खोज रहें हैं दूसरा विकल्प
June 17, 2018
नई दिल्ली, 2014 के लोकसभा चुनाव मे बीजेपी की अप्रत्याशित जीत के पीछे दलितों-पिछड़ों के वोटों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. लेकिन लोकसभा चुनाव मे बीजेपी की जीत के बाद से ही दलित-पिछड़े सरकार के एजेंडे से बाहर हो गये. आज हालात यह है कि इनका बीजेपी से पूरी तरह मोह भंग हो गया है. अब ये दूसरा विकल्प खोज रहें हैं .
बीजेपी की मोदी सरकार द्वारा अपने चार साल से अधिक के कार्यकाल मे एक भी काम दलितों-पिछड़ों के हित मे नही किया गया है. बल्कि दलितों – पिछड़ों को संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण को भी लगातार प्रभावहीन करने की को शिश की गई है. हाल ही में केन्द्र सरकार ने बाकायदा नोटिफ़िकेशन जारी कर कुछ पदों के लिए वैकेंसी निकाली है. जॉइंट सेक्रटरी के पद पर नियुक्ति के लिए बिना यूपीएससी परीक्षा दिए हुए लोगों की भर्ती हो सकती है. यानी यहां पर आरक्षण के नियम भी लागू नहीं होंगे.
मोदी सरकार से दलित-ओबीसी हटने लगे हैं और दूसरा विकल्प खोजने लगे हैं. अब इन लोगों को लुभाने में सभी राजनैतिक पार्टियां जुट गई हैं. इससे बीजेपी की मुसीबत और बढ़ गई है. कांग्रेस भी इन नाराज़ लोगों को अपनी तरफ़ जुटाने में लगी है. कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व पर नज़र डालें तो कांग्रेस की नई नीति ऐसी दिखती भी है.
पार्टी संगठन में अशोक गहलोत काफ़ी ताक़तवर माने जाते हैं. अशोक गहलोत जाति से माली हैं और जातिगत राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं. वहीं दूसरी तरफ़ कांग्रेस ने ओबीसी नेताओं में केशवचंद्र यादव, सिद्धारमैया, भूपेश बघेल, डी के शिवकुमार को आगे बढ़ाया है. यूपी के देवरिया के रहने वाले केशवचंद्र यादव को हाल ही मे युवक कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है.
अगर हम बीजेपी के गढ़ गुजरात विधान सभाओं के नतीजों पर नजर डालें तो गुजरात में बीजेपी को शहरी इलाकों में जीत मिली, लेकिन ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस और उनके समर्थित नेता ही जीतें हैं। ग्रामीण क्षेत्र मे कांग्रेस को कुल 67 सीटें मिलीं. यानी यहां पर कांग्रेस की जीत के पीछे दलित और ओबीसी वोटर का ज़्यादा हाथ था.
इसलिये जब बीजेपी के गढ़ गुजरात मे ही उसके हाथ से दलित और ओबीसी सरक गया है तो अन्य राज्यों मे स्थिति और भी बुरी है.2 अप्रैल के दलित आंदोलन मे पूरे देश मे बीजेपी के खिलाफ सड़कों पर दलितों का गुस्सा नजर आ गया. हाल मे हुये उपचुनावों ने स्पष्ट कर दिया है कि दलित और ओबीसी अब बीजेपी के खिलाफ वोट कर रहा है. देश के सबसे बड़े राज्य यूपी मे सपा-बसपा गठजोड़ के कारण दलित और ओबीसी वोट पूरी तरह बीजेपी के हाथों से निकल गया है. बिहार मे दलित और ओबीसी पूरी तरह राजद के पक्ष मे खड़ा दिखायी दे रहा है.