अब महिलाओं को पीरियड्स के दौरान रहना पड़ेगा इस सरकारी घर में..
January 16, 2019
नई दिल्ली, आधुनिकता के इस दौर में हमारे देश में कई तरह के बदलाव किए जा रहे हैं. पहनावे, खान—पान के साथ—साथ लोगों के विचार भी बदल रहे हैं. पुरानी रूढ़िगत विचारों का खंडन कर लोग नये विचारों का स्वागत कर रहे हैं, लेकिन आज भी भारत में कुछ ऐसी जगहें हैं जहां बदलाव की स्थिति न के बराबर है. लोग आज भी रूढ़ियों में जकड़े हुए है.
उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है. यहां के चंपावत जिले के कई गांवों में पीरियड्स के दौरान महिलाओं के साथ भेदभाव होता है. पीरियड्स के दौरान यहां लड़कियों और महिलाओं को घर से बाहर अलग रहना पड़ता है. सरकार भी कहीं न कहीं इस सोच को बढ़ावा दे रही है. चंपावत जिले के दूरदराज गांव गुरचम में सरकारी फंड से एक ऐसी इमारत बनवाई जा रही है, जहां पीरियड्स के दौरान घर से बाहर रहने को मजबूर महिलाओं और लड़कियों को अस्थायी तौर पर यहां रखा जाएगा.
ये मामला तब सामने आया, जब गांव के एक दंपती ने मेंस्ट्रूएशन सेंटर के निर्माण को अवैध ठहराते हुए जिलाधिकारी (डीएम) से इसकी शिकायत की. वहीं, एक अधिकारी का कहना है कि सरकार ने संबंधित गांव में विकास कार्यों के लिए फंड अलॉट किए थे. इस फंड से अगर मेंस्ट्रूएशन सेंटर बनवाया जा रहा है, तो ये अवैध है. शिकायत की गहनता से जांच होगी.
बता दें कि चंपावत जिला भारत-नेपाल बॉर्डर से सटा हुआ है.मेंस्ट्रूएशन सेंटर का विचार काफी हद तक नेपाल के ‘पीरियड्स हट’ जैसा है. दरअसल, नेपाल में सदियों से छौपदी प्रथा चली आ रही है. छौपदी का मतलब है अनछुआ. इस प्रथा के तहत पीरियड या डिलिवरी के चलते लड़कियों को अपवित्र मान लिया जाता है.इसके बाद उन पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी जाती हैं. वह घर में नहीं घुस सकतीं. बुजुर्गों को छू नहीं सकती. खाना नहीं बना सकती और न ही मंदिर और स्कूल जा सकती हैं. छौपदी को नेपाल सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में गैरकानूनी करार दिया था, लेकिन फिर भी ये जारी है.