भारत के इस इलाके में दुल्हन नहीं दूल्हे की होती है विदाई…

नई दिल्ली, भारत के इस इलाके में दुल्हन नहीं दूल्हे की विदाई होती है। मेघालय के इस हिस्से में समाज का वह रूप मिलता है, जिसमें संपत्तियों पर अधिकार स्त्री के हाथ में होता है यानी मां के बाद संपत्ति बेटी के हाथ में जाती है। इससे निर्णय लेने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। गारो, खासी और जयंतिया जनजातियों में स्त्री की यह भूमिका देश के अन्य भागों से उसे विशेष बनाती है। इसलिए वहां की स्त्रियों को अपने परिवार के पुरुषों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। यहां की स्त्रियां अपनी रुचि और अपने कौशल के आधार पर अपने पेशे चुनती हैं। उन पर यह नहीं थोपा जा सकता कि वे घर के काम ही करेंगी।

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यहां से बाहर के भारत की कल्पना कीजिए, जहां रात के दस बजे किसी पान की दुकान पर कोई लड़की काम करते हुए नहीं मिल सकती, लेकिन डाउकी की छोटी-छोटी दुकानें चलाने वाली लड़कियों को देखकर स्त्री को लेकर इस समाज की सहजता का पता लगता है। शेष भारत के लोगों के लिए यह कौतूहल का विषय हो सकता है कि विवाह के बाद पुरुष अपने घर नहीं, बल्कि अपनी पत्नी के घर रहे। यहां दुल्हन के बजाय दूल्हे की विदाई होती है। उसका घर छूटता है।

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पुरुष यदि कोई पारिवारिक व्यवसाय कर रहे हैं तो अपनी बहन के बड़ी होने पर वह व्यवसाय उसे सौंपकर अपनी पत्नी के काम में हाथ बंटाते हैं। डाउकी के समाज का यह अद्भुत रूप केवल पर्यटक की भांति देखने लायक ही नहीं है, बल्कि बहुत कुछ सीखने लायक भी है कि कैसे देश के अन्य हिस्सों के पुरुष स्त्रियों के प्रति सहज होना सीख सकते हैं। मातृसत्तात्मक समाज होने के कारण वहां स्त्रियों के प्रति हिंसा लगभग नगण्य है।

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यदि आप मांसाहार के शौकीन हैं तो यहां के रास्तों में आपको कई ढाबे मिलेंगे। वे दिखने में छोटे जरूर हो सकते हैं, लेकिन यहां के व्यंजनों का स्वाद आपको लंबे समय तक याद रह जाएगा। पर जो चीज खास तौर पर आकर्षित करेगी, वह है इन ढाबों का संचालन करतीं स्त्रियां। आम जनजीवन में स्त्रियों की ऐसी भागीदारी यहां आने वाले लोगों को सुखद आश्चर्य से भर देती है। 

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