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गुजरात चुनावों मे उभरे ये सामाजिक युवा नेता, क्या कर रहें हैं लोकसभा चुनाव मे

अहमदाबाद, गुजरात विधानसभा चुनावों मे तीन सामाजिक युवा नेता उभरे थे। उनहोंने चुनावों मे बड़ा असर डाला था। लेकिन लोकसभा चुनाव मे ये तीनों युवा नेता क्या कर रहें हैं। गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान उभरे तीन युवा नेताओं के समक्ष स्थितियां भिन्न हैं।

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पाटीदार आरक्षण के अगुवा हार्दक पटेल, युवा ओबीसी विधायक अल्पेश ठाकोर और दलित विधायक जिग्नेश मेवानी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ रहे हैं और चुनाव प्रचार में भी उनकी भूमिकाएं बदली हुई हैं। गुजरात विधानसभा चुनावों में अपने सत्ता विरोधी रुख और जाति आधारित अपने विमर्शों से तीनों नेताओं ने लोगों को प्रभावित करने और कांग्रेस को अपनी सीटों की संख्या 54 से बढ़कर 77 सीटों तक पहुंचाने में कामयाबी हासिल की थी। चुनाव में 182 सदस्यीय विधानसभा में सत्तारूढ़ भाजपा 99 पर सिमट गई।

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पटेल पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के कोटा आंदोलन से उभरे जबकि ठाकोर किसान आंदोलन से ओबीसी नेता बन कर उभरे। ‘आम आदमी पार्टी’ के कार्यकर्ता मेवानी मृत गाय की खाल उतारने के मुद्दे पर उना में दलित युवकों के उत्पीड़न के बाद उभरे जनाक्रोश का केन्द्र बन कर अपने समुदाय की आवाज बने।
तीनों ने कांग्रेस का रूख किया। 2017 के विधानसभा चुनावों में ठाकोर राधनपुर सीट से तथा मेवानी वडगाम सीट से कांग्रेस के समर्थन से निर्दलीय विधायक बने।

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पटेल ने उस वक्त राजनीति में कदम नहीं रखा लेकिन विपक्ष का समर्थन किया और भाजपा के खिलाफ जमकर प्रचार किया। उन्होंने पीएएएस के अपने साथी ललित वसोया को धोराजी से टिकट दिलवाई। वर्तमान में ठाकोर कांग्रेस का हिस्सा नहीं हैं और इस बात से नाराज हैं कि उन्हें और उनके समर्थकों को लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया गया। मेवानी खुद के लिए राष्ट्रीय प्रोफाइल बनाने का प्रयास कर रहे हैं। पिछले तीन हफ्ते से गुजरात से बाहर हैं। वह बिहार के बेगूसराय में भाकपा उम्मीदवार कन्हैया कुमार और बेंगलुरू लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार प्रकाश राज के लिए प्रचार कर रहे हैं। प्रकाश राज अभिनेता से नेता बने हैं।

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राहुल गांधी की मौजूदगी में पटेल कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन दंगे के एक मामले में दोषी ठहराए जाने और दो वर्ष की सजा पाने के कारण इस बार उनके लोकसभा चुनाव लड़ने की उम्मीदें धाराशायी हो गईं। तीनों युवा नेताओं की परिस्थितियां बदल जाने से भाजपा आक्रामक है और उसका दावा है कि तीनों द्वारा अपने आंदोलन में कांग्रेस का छिपकर सहारा लेने के कारण उनका भांडाफोड़ हो गया है। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने कहा, ‘‘हार्दिक को कांग्रेस का समर्थन था।

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कांग्रेस में शामिल होने के कारण अब उनका भांडाफोड़ हो गया है। इस बार अगर हार्दिक ने चुनाव लड़ा होता तो पाटीदार समुदाय उन्हें हरा देता लेकिन अदालत (के फैसले) ने उन्हें बचा लिया।’’ भाजपा प्रवक्ता प्रशांत वाला ने दावा किया कि पाटीदार समुदाय में हार्दिक की विश्वसनीयता खत्म हो चुकी है क्योंकि पहले उन्होंने कहा था कि वह राजनीति में नहीं आएंगे और फिर कांग्रेस में शामिल हो गए। वाला ने आरोप लगाए, ‘‘हार्दिक ने कई बार दावा किया कि वह राजनीति में नहीं आएंगे लेकिन आरक्षण आंदोलन का इस्तेमाल कर वह राजनीति में आ गए।

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पाटीदार समुदाय को अब सच्चाई पता चल गई। हम वर्षों से कहते आ रहे हैं कि हार्दिक कांग्रेस का मुखौटा हैं।’’
कांग्रेस का कहना है कि हार्दिक के पार्टी में शामिल होने से उसे फायदा मिलेगा वहीं ठाकोर के बाहर जाने का कोई असर नहीं होगा। कांग्रेस प्रवक्ता हिमांशु पटेल ने कहा, ‘‘भाजपा कुछ भी कह सकती है, लेकिन हार्दिक कांग्रेस के लिए स्टार प्रचारक हैं और उनके कांग्रेस में शामिल होने से हमें फायदा हुआ है।’’ पटेल ने कहा, ‘‘मेवानी भी हमारे साथ हैं। 2017 से तुलना करने पर तीनों नेताओं के लिए हालात अब अलग हो सकते हैं, लेकिन यह कांग्रेस के खिलाफ नहीं जाएगा।

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