सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में जन्माष्टमी पर दही हांड प्रथा में लगाई शर्तें
August 17, 2016
नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में जन्माष्टमी पर दही हांड प्रथा में कई शर्तें लगाई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के अवसर पर दही हांडी की प्रथा में 18 साल से कम उम्र के युवा हिस्सा नहीं ले सकते। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि दही हांडी के लिए बनाए जाने वाले पिरामिड की ऊंचाई 20 फुट से ज्यादा की नहीं होनी चाहिए। यह सीमा बंबई उच्च न्यायालय ने तय की थी। न्यायमूर्ति एआर दवे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने एक याचिका पर नए सिरे से गौर करते हुए इस साल अक्तूबर में सुनवाई का निर्णय किया।
हालांकि पीठ ने दही हांडी समारोह के नियमन के लिए उच्च न्यायालय की ओर से जारी दो अन्य निर्देशों के पालन को निलंबित कर दिया। शीर्ष न्यायालय की ओर से निलंबित किए गए उच्च न्यायालय के निर्देश 18 साल से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक प्रस्तुतियों में शामिल होने से रोकने के लिए कानून में संशोधन से जुड़ा है। न्यायालय ने उस निर्देश को भी निलंबित कर दिया, जिसमें गोविंदाओं के जन्म प्रमाण पत्र पर अंकित जन्मतिथि को जांचने वाले अधिकारियों से 15 दिन पहले मंजूरी लेने की बात कही गई है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी कम उम्र का बच्चा इसमें हिस्सा नहीं ले रहा। सुनवाई के दौरान पीठ प्रतिभागियों की न्यूनतम उम्र और पिरामिड की अधिकतम ऊंचाई के मुद्दे पर सहमत हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त को दही हांडी के लिए बनाए जाने वाले मानव पिरामिड की ऊंचाई को 20 फुट तक सीमित करने वाले बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देनी वाली एक याचिका पर नए सिरे से गौर करते हुए कहा कि कोई भी आदेश जारी करने से पहले उसे जनहित याचिकाकर्ता की बात सुनने की जरूरत है। न्यायालय ने सामाजिक कार्यकर्ता स्वाति सायजी पाटिल से जवाब मांगा था। स्वाति ने उच्च न्यायालय में एक याचिका लगाकर महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू करने की मांग की थी क्योंकि राज्य सरकार उच्च न्यायालय के आदेश का पालन करने में विफल रही थी।
महाराष्ट्र सरकार ने इससे पहले शीर्ष अदालत से संपर्क करके उसके 2014 के आदेश पर स्पष्टीकरण की मांग की थी। इस आदेश के जरिए उच्च न्यायालय ने दही हांडी में 18 साल से कम के लोगों की भागीदारी पर प्रतिबंध लगा दिया था। उच्च न्यायालय ने 11 अगस्त 2014 को स्वाति की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया था कि मानव पिरामिडों की ऊंचाई 20 फुट से ज्यादा नहीं होनी चाहिए और 18 साल से कम के बच्चों को इसमें भाग नहीं लेने दिया जाना चाहिए। तब राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने शुरूआत में उच्च न्यायालय के आदेश को निलंबित कर दिया था और बाद में उसने इसे चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था। महाराष्ट्र सरकार ने यह कहा था कि चूंकि शीर्ष अदालत ने मानव पिरामिड की ऊंचाई को लेकर उच्च न्यायालय की ओर से लगाए गए प्रतिबंध पर कोई मत नहीं दिया है, इसलिए वह इसके पहले के आदेश को मानने के लिए बाध्य नहीं है। हालांकि उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से कहा था कि वह शीर्ष अदालत से इस पहलू पर स्पष्टीकरण मांगे कि जब तक वह इस आदेश को दरकिनार नहीं करती, तब तक उसका (उच्च न्यायालय) का आदेश लागू रहेगा।