मुनीर बख्श आलम डेढ़ साल से गुर्दे की बीमारी से जूझ रहे थे। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। शोक संवेदना व्यक्त करने के लिए उनके बनौरा गांव स्थित आवास पर साहित्यकारों, शायरों व अन्य संभ्रांत लोगों की भीड़ जुटी रही। मंगलवार की देर शाम को उनके पार्थिव शरीर का सुपुर्दे खाक किया गया।
एक जुलाई वर्ष 1943 केा घोरावल तहसील के बनौरा गांव में श्री आलम का जन्म हुआ था। इन्होंने स्वामी अड़गड़ानंद के यथार्थ गीता का उर्दू में अनुवाद किया एवं दिव्य प्रभा पत्रिका के संपादक रहे। उन्हे साहित्य गौरव, बहादुर शाह जफर सम्मान, सनातन गौरव सम्मान, अवधेशानंद राष्ट्रीय सम्मान के अलावा देश भर से कई सम्मान मिला।
उनके निधन पर मधुरिमा साहित्य गोष्ठी, असुविधा साहित्यिक पत्रिका व शहीद स्थल प्रबंधन ट्रस्ट के तत्वावधान में मंगलवार को वरिष्ठ साहित्यकार अजय शेखर के आवास पर शोक सभा आयोजित कर आलम साहब को भावभीनी श्रद्धांजलि साहित्यकारए बुद्धिजीवियोंए कलाकारों एवं कलमकारों ने अर्पित की