मुसलमानों में तीन तलाक की संवैधानिक वैधता पर केंद्र रखे अपना पक्ष-सुप्रीम कोर्ट
August 26, 2016
नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों में तीन तलाक के चलन की संवैधानिक वैधता के सवाल पर केंद्र सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए नोटिस जारी किया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को पेंडिंग मामलों की लिस्ट में जोड़ दिया। एक मुस्लिम महिला ने तीन तलाक की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए अपनी याचिका में सवाल किया है कि क्या मनमाने और एकतरफा तीन तलाक से किसी महिला को ससुराल में उसके हक और बच्चों की कस्टडी के अधिकार से वंचित किया जा सकता है? याचिका में इशरत जहां ने कोर्ट से मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) ऐप्लिकेशन ऐक्ट, 1937 के सेक्शन 2 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है। जहां ने कहा है कि आर्टिकल 21 के तहत संविधान, और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसकी व्याख्या प्रत्येक नागरिक को गरिमा के साथ जीवन का अधिकार सुनिश्चित करता है।
उन्होंने पूछा है कि क्या मनमाने ढंग से तलाक दी गई महिला को उसके अधिकारों से वंचित किया जा सकता है। जहां ने कहा कि उनके पति ने उन्हें तीन तलाक के जरिये तलाक दिया है इसके बावजूद भी वह अपने ससुराल में रह रही हैं, जहां उनकी जान को गंभीर खतरा है। जहां कहती हैं, मेरे पति और उनके रिश्तेदार मुझे मेरे ससुराल से बाहर करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। उनका कहना है कि उनके 4 बच्चों को जबरन उनसे दूर कर दिया गया है और उन्हें ये भी नहीं पता कि बच्चें कहां हैं। याचिका में कहा गया है, याचिकाकर्ता के पास कोई सहारा नहीं है क्योंकि उसके माता-पिता बिहार में रहते हैं। वह अपनी बहन की मदद से किसी तरह रह रही है। पुलिस भी उसके बच्चों को ढूढ़ने की कोई कोशिश नहीं कर रही है।
कोर्ट स्वतः संज्ञान लेते हुए मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर तीन तलाक के प्रभावों की जांच कर रहा है। 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान व्यापक बहस का समर्थन किया था। तलाक की पीड़ित शायरा बानु और एक दूसरी महिला के अतिरिक्त मुस्लिम महिला संगठनों ने तलाक संबंधी पर्सनल लॉ के प्रावधानों पर सवाल उठाया है। वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक के बचाव में है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्डने कहा है कि कोर्ट को तीन तलाक की वैधता की जांच का कोई अधिकार नहीं है।