नयी दिल्ली , उच्चतम न्यायालय से कोरोना वायरस ‘कोविड 19’ जैसी महामारी से निपटने के लिए पीएम केयर्स कोष के गठन की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति बी आर गवई की खंडपीठ ने वीडियोकांफ्रेंसिंग के जरिये की गयी सुनवाई के दौरान अधिवक्ता शाश्वत आनंद की याचिका निरस्त कर दी। न्यायालय ने इस तरह की याचिका दायर करने को लेकर श्री आनंद से नाराजगी जतायी और एक मिनट के भीतर याचिका खारिज कर दी।
सुनवाई के दौरान श्री आनंद ने खंडपीठ से कहा कि वह कम से कम दो मिनट उनका निवेदन सुन लें, लेकिन खंडपीठ ने नाराजगी भरे लहजे में कहा कि इस याचिका से राजनीतिक बू आती है। श्री आनंद के बार-बार आग्रह के बाद न्यायमूर्ति रमन ने उन्हें आगाह किया कि या तो वह (याचिकाकर्ता) अपनी याचिका वापस ले लें, या न्यायालय उन पर जुर्माना लगायेगी।
उन्होंने कहा, “आपके (याचिकाकर्ता के) पास दो ही विकल्प है, या तो आप याचिका वापस ले लीजिए या आप पर हम भारी जुर्माना लगायेंगे।” इसके बाद ने श्री आनंद ने याचिका वापस ले ली।
शीर्ष अदालत ने गत 13 अप्रैल को भी पीएम केयर्स के गठन की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक और याचिका खारिज कर दी थी। उस दिन मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एम. शांतनागौदर की पीठ ने याचिकाकर्ता मनोहर लाल शर्मा को इस तरह की याचिका दायर करके न्यायालय का समय खराब करने के लिए कड़ी फटकार लगायी थी।
न्यायमूर्ति बोबडे ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हुई सुनवाई के दौरान कहा था कि याचिकाकर्ता ने बेकार की याचिका दायर की है। यह कोई कर (टैक्स) का मामला नहीं है। न्यायालय का समय बर्बाद करने पर न्यायालय जुर्माना भी कर सकता है।
श्री शर्मा ने पीएम केयर्स को भ्रष्टाचार की जड़ बताते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं कोष स्थापना में शामिल सभी प्रतिवादियों के खिलाफ विशेष जांच दल से जांच के आदेश दिये जाने चाहिए। याचिकाकर्ता का कहना था कि देश के लोगों की मदद के लिए राहत कोष की स्थापना केवल संसद द्वारा की जा सकती है। कोरोना संक्रमित लोगों की मदद के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए कोई अधिसूचना ही जारी नहीं की गयी। असल में यह राहत कोष भ्रष्टाचार करने के उद्देश्य से बनाया गया है।
सुनवाई के दौरान श्री शर्मा ने न्यायमूर्ति बोबडे से आग्रह किया था कि वह उनकी बात सुन लें। लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने कहा था, “बहस मत कीजिये। हम आपकी याचिका खारिज करते हैं।”