सरकार देश में न्याय की नई परिभाषा गढ़ रही है, जिसमें नियम-कायदे और अदालतों के लिए कोई स्थान नहीं है। फटाफट न्याय की इस व्यवस्था में राजनीतिक आका का हुक्म ही सर्वोपरि माना जा रहा है, मातहत अधिकारी जिसकी तामील करना सिर्फ अपना फर्ज समझते हैं। ये सवाल आज हैरानी के साथ कई हलके में इसलिए पूछा जा रहा है, क्योंकि विध्वंस का प्रतीक बुलडोजर ही न्याय का प्रतीक बनता दिख रहा है। सख्त कार्रवाई के नाम पर नियमों को ताक पर रख निर्माण ढहाए जा रहे हैं। कोर्ट के आदेश तक की परवाह भी देर से की जाती है। ऐसा नहीं कि अवैध ढांचा गिराने में पहली बार बुलडोजर का इस्तेमाल हो रहा हो, लेकिन यह पहली बार है कि बुलडोजर के निशाने पर सरकार का विरोध करने वाले लोग अधिक हैं। भाजपा की निलंबित राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा के मोहम्मद पैगम्बर साहब पर दिए गए आपत्तिजनक बयान के बाद मुस्लिमों ने नूपुर की गिरफ़्तारी की मांग को लेकर यूपी समेत देश के कई जिलों में सडकों पर उतरकर अपना विरोध दर्ज कराया और इस दौरान हिंसा भी भड़की, प्रयागराज में हुई हिंसा में शामिल होने के आरोपी जावेद का घर जमींदोज कर दिया गया, जबकि ये मकान उनकी पत्नी के नाम से है, इसको लेकर विपक्ष भी हमलावर है।
बुलडोजर कार्रवाई की शुरुआत उत्तर प्रदेश से हुई। जुलाई 2020 में कानपुर के बिकरू में माफिया विकास दुबे को पकड़ने गई पुलिस टीम पर हमला हुआ, जिसमें नौ पुलिसकर्मी मारे गए थे। उसके बाद प्रशासन ने विकास दुबे की कोठी पर बुलडोजर चला दिया था। खासतौर पर यूपी में सरकार का विरोध करने वालों पर केवल बुलडोजर का ही इस्तेमाल नहीं हुआ, बल्कि सीएए और एनआरसी का शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने वालों के सार्वजनिक स्थानों पर फोटोयुक्त पोस्टर भी लगाये गए और उनके खिलाफ सरकारी संपत्ति के नुकसान की भरपाई का नोटिस भी जारी किया गया, हाईकोर्ट ने सरकार की इस कार्रवाई पर रोक लगा दी, तब कहीं जाकर एनआरसी के विरोध में शांतिपूर्ण तरीके से आन्दोलन कर रहे लोगों को राहत मिल सकी। इसके बाद सरकार विरोधी आन्दोलन में शामिल लोगों की आवाज को दबाने के लिए यूपी सरकार ने बुलडोजर का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया और देखते ही देखते विध्वंस के प्रतीक बुलडोजर को सरकार ने न्याय के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करना शुरू कर दिया, भाजपा ने यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान बुलडोजर को भी अपना मुद्दा बनाया और जीत के बाद भाजपा ने राज्य में बुलडोजर रैलियां निकालीं। ये न्याय का प्रतीक बुलडोजर उत्तर प्रदेश से चलकर मध्य प्रदेश पहुंचा वहां खरगोन जिले में रामनवमी के दौरान हुई हिंसा में कथित तौर पर लिप्त लोगों के मकानों और दुकानों पर राज्य सरकार ने बुलडोजर चलवा दिया। सरकार अपने खिलाफ विरोध करने वालों की आवाज दबाने के लिए बुलडोजर के नाम पर तानाशाहीपूर्ण रवैया अपना रही है, और ये तानाशाहीपूर्ण कार्रवाई भाजपा शासित अन्य राज्यों में भी देखने को मिल रही है, भाजपा शासित राज्य गुजरात में बुलडोजर न्याय दिखा। वहां खंभात में रामनवमी के दिन सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। हिंसा के बाद दुकानों, घरों और सड़क किनारे बनी झुग्गियों पर बुलडोजर चला।गुजरात के हिम्मतनगर में, जहां 10 अप्रैल को रामनवमी जुलूस के दौरान हिंसा हुई थी, वहां दो हफ्ते बाद फिर ‘अवैध निर्माण’ हटाने के लिए बुलडोजर चलाया गया।दिल्ली में हनुमान जयंती पर जहांगीरपुरी में हिंसा हुई। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों के अवैध कब्जे तोड़ने की मांग भाजपा शासित उत्तर दिल्ली नगर निगम से की। अगले ही दिन निगम के अधिकारी बुलडोजर लेकर पहुंच गए। अतिक्रमण हटाना शुरू किया ही था कि सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने अभियान रोकने का आदेश दिया। फिर भी अधिकारियों ने यह कहते हुए कार्रवाई दो घंटे तक जारी रखी कि उन्हें अदालत का आदेश नहीं मिला है।
सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष एवं पूर्व आईएएस कुंवर फ़तेह बहदुर के मुताबिक केवल सरकार के विरोध में आन्दोलन करने वालों की आवाज को दबाने के लिए उनके घरों पर बुलडोजर चलाया जा रहा है, उनका कहना है कि राजनीतिक लोग तो अपने लाभ के लिए किसी भी तरह का आदेश देंगे, लेकिन इस मामले में सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों की जिम्मेदारी बनती है कि वे संविधान के मुताबिक वैधानिक कार्रवाई करें, प्रयागराज में जावेद के मकान को विकास प्राधिकरण ने बुलडोजर ले जाकर ध्वस्त कर दिया, जबकि वह मकान उसकी पत्नी के नाम है, इसके अलावा ध्वस्तीकरण की कार्रवाई से पहले उसे अपना पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया गया, एक दिन पहले नोटिस चस्पा किया और दूसरे दिन उसका मकान गिरा गिया गया, प्राधिकरण के अधिकारियों ने ये मकान यूपी नगरीय नियोजन एक्ट के किस प्राविधान के तहत गिराया और आवास पर कौन-कौन सा हिस्सा अवैध रूप से बनाया गया है, क्या प्राधिकरण ने प्रयागराज में बने अन्य मकानों में बने अवैध निर्माण को ध्वस्त करने के लिए किसी को नोटिस दिया है, इस तरह की एकतरफा कार्रवाई अधिकारियों की निष्पक्ष कार्यों पर सवालिया निशान लगाता है।
कमल जयंत (वरिष्ठ पत्रकार)।