लखनऊ, यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव के मद्दे नजर, समाजवादी पार्टी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) में सुलह समझौते की बात आखिर नहीं पूरी हो पाई ?
समाजवादी पार्टी के संरक्षक और पूर्व रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव सहित सभी समाजवादी विचारधारा के समर्थकों का यह मानना है कि यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव के मद्दे नजर, समाजवादी पार्टी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) में सुलह होने बहुत जरूरी है। प्रदेश में बीजेपी को हराने के लिये दोनों को एक मंच पर आना पड़ेगा।
समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की दिली इच्छा है कि चाचा और भतीजे में कैसे भी समझौता हो जाये। हाल ही मे, उन्होने दिल्ली मे सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव को सामने बैठाकर कहा कि जब तक तुम दोनों एक नही होते हो सत्ता में नही आ सकते हो। अगर सत्ता मे आना है तो दोनों का एक होना जरूरी है।
लेकिन मुलायम सिंह यादव की इस बात का शायद दोनों नेताओं पर असर नही पड़ा और चाचा भतीजे में सुलह समझौते की बात अंतिम रूप नही ले पाई। अब सवाल यह उठता है कि आखिर चाचा भतीजे में सुलह समझौते की बात कहां पर आकर अटकी ?
सूत्रों के अनुसार, अखिलेश यादव की यह इच्छा है कि शिवपाल सिंह यादव अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का विलय समाजवादी पार्टी में कर दें। लेकिन शिवपाल यादव इसके लिये तैयार नहीं हैं। शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी से गठबंधन करना चाहतें है। उनकी इच्छा है कि सपा के साथ प्रसपा का सीटों को लेकर समझौता हो ना कि विलय।
इसीलिये कल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की प्रदेश कार्यकारिणी की एक दिवसीय बैठक में प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि प्रसपा का स्वतंत्र अस्तित्व बना रहेगा। शिवपाल यादव ने यह बात उस समय कही है जब प्रसपा के सपा में विलय की चर्चाएं तेजी से चल रही थी।
प्रसपा के प्रदेश मुख्यालय में शिवपाल यादव की अध्यक्षता में शुरू हुई बैठक में उन्होने पार्टी पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाया कि उनके सम्मान के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उन्होंने प्रसपा के किसी दल में विलय की चर्चा को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि पार्टी केवल सम्मानजनक गठबंधन करेगी।
दरअसल, शिवपाल यादव यह जानतें है कि सपा में प्रसपा का विलय करने से उन्हें और उनके बेटे आदित्य का समायोजन तो समाजवादी पार्टी में सम्मानजनक पद पर हो जायेगा , लेकिन बुरे समय में उनका साथ देने वाले हजारों नेताओं व कार्यकर्ताओं को सपा में यथोचित सम्मान नही मिल पायेगा। तब सपा मे कुछ सीटों के लिये विलय करने से अच्छा है कि सपा के साथ अपनी पार्टी का सम्मानजनक अस्तित्व बनाये रखते हुये सीटों पर समझौता किया जाये।
वहीं, अखिलेश यादव को आशंका है कि प्रसपा से गठबंधन करने से उन्हे कोई खास फायदा होना नही है। बल्कि सीटो को लेकर गठबंधन करने से सारा फायदा प्रसपा को ही होगा और भविष्य में ये सपा के लिये सरदर्द बन सकतें हैं। क्योंकि दोनों का वोट बैंक एक ही है। ऐसी स्थिति मे प्रसपा का सपा मे विलय कराकर हमेशा के लिये ये सरदर्द हमेशा के लिये खत्म कर लिया जाये।
फिलहाल चाचा और भतीजे में सुलह की संभावनाये लगभग समाप्त हैं, लेकिन राजनीति मे न कोई स्थायी रूप से शत्रु होता है और न स्थायी रूप से मित्र होता है। कभी भी कुछ भी हो सकता है?