बीजेपी सरकार का एक और घोटाला, मुख्यमंत्री कार्यालय पी गया कई करोड़ की चाय…
March 29, 2018
मुंबई, भारतीय जनता पार्टी सरकार के घोटाले अब एक के बाद एक सामने आने लगें हैं। बीजेपी सरकार के चूहा घोटाले के बाद अब चाय का घोटाला सामने आया है। महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री कार्यालय रोज 18,500 कप चाय पी जाता है। आरटीआइ के माध्यम से सामने आई इस जानकारी से चाय घोटाला सामने आया है। तीन वर्ष में मुख्यमंत्री कार्यालय में चाय पर हुए खर्च में 577 फीसद की बढ़ोतरी हुई है।
मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष संजय निरूपम ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) का हवाला देते हुए कहा कि पिछले 3 साल में सीएमओ में चाय की खपत पर खर्च में भारी वृद्धि हुई है। संजय निरूपम ने चूहा घोटाले पर भी सवाल किया उन्होंने कहा कि क्या मंत्रालय के चूहे चाय पीते हैं। आरटीआई में सामने आया कि महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री कार्यालय रोज 18500 कप चाय पी जाता है।
संजय निरुपम ने बताया कि दो साल पहले मुख्यमंत्री कार्यालय में 57,99,000 रुपये चाय पर खर्च हुए थे। उसके अगले साल यह खर्च एक करोड़, 20 लाख हो गया। 2017-18 में मुख्यमंत्री कार्यालय ने चाय पर तीन करोड़, 34 लाख रुपये के लगभग खर्च किया है। यदि एक साल में इतना खर्च होता है, तो महीने में औसतन 27 लाख रुपये और प्रतिदिन लगभग 92,000 रुपये का खर्च चाय पर हो रहा है।
संजय निरुपम ने सवाल किया कि यदि चाय की कीमत पांच रुपये भी मानी जाए तो 18,951 चाय रोज मुख्यमंत्री के कार्यालय में पी जा रही है। यदि एक आगंतुक दो कप चाय भी पीता हो, तो क्या यह संभव है कि रोज 9,000 मेहमान मुख्यमंत्री कार्यालय में आते होंगे? उन्होंने खुद ही जवाब देते हुये कहा कि पूरे मंत्रालय में 5000 से ज्यादा लोग नहीं आते। तो आखिर कौन कर रहा है यह घोटाला?
मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष ने इसे मुख्यमंत्री कार्यालय का चाय घोटाला करार देते हुए कहते हैं कि चाय नहीं पी जा रही है। चाय के नाम पर सिर्फ बिल भरकर घोटाला किया जा रहा है। जिस प्रकार भाजपा के ही पूर्व मंत्री एकनाथ खडसे के अनुसार एक सप्ताह में ही 3,19,400 चूहे मंत्रालय में मार डाले गए।
निरुपम ने कटाक्ष करते हुए कहा कि भाजपा वालों को चाय से कुछ ज्यादा ही लगाव है। मोदी खुद को चाय वाला बताकर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए। उसके बाद उन्होंने चाय पर चर्चा का आयोजन शुरू कर दिया। अब मुख्यमंत्री ने चाय पर खर्चा कर दिया। यानी चाय पर चर्चा से चाय पर खर्चा, वह भी अनाप-शनाप। कहां तक जा पहुंची है भाजपा?