लखनऊ, उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग का आरक्षण ख़त्म करने के उच्च न्यायालय के फैसले के बाद एक बार फिर पूरे देश में आरक्षण को लेकर बहस तेज हो गयी है, अदालत के इस फैसले के बाद पंचायत चुनावों में भी पिछड़ा वर्ग के आरक्षण पर तलवार लटकने लगी है, यदि विभिन्न दलों में शामिल पिछड़ा वर्ग के जनप्रतिनिधियों ने एकजुट होकर सरकार पर दबाव नहीं बनाया तो राजनीतिक क्षेत्र के बाद शिक्षा और सरकारी सेवाओं में भी इनके अधिकारों को ख़त्म करने में सरकारें देर नहीं करेंगी। वैसे इन वर्गों को सरकारी, शैक्षिक और राजनीतिक क्षेत्र में योजनाओं और आरक्षण का लाभ जातीय जनगणना कराये बगैर दिया जाना संभव नहीं है। यदि जल्दी ही पिछड़ा वर्ग के लोगों की जातीय जनगणना नहीं हुई तो ऐसी स्थिति में यूपी के बाद देश के अन्य राज्यों में भी निकाय चुनावों में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर आरक्षण ख़त्म हो जायेगा। ऐसे में अति पिछड़ा और पिछड़ा वर्ग में बंटे इस समाज की जिम्मेदारी बनती है कि वे एकजुट होकर अपने संवैधानिक अधिकारों को बचाने के लिए आन्दोलन करें, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब देश के सभी राज्यों में निकाय चुनावों के साथ ही पंचायत चुनावों में भी पिछड़ा वर्ग के लिए प्रदत्त आरक्षण ख़त्म हो जायेगा।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के क्रम में महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश में भी निकाय चुनावों में पिछड़ा वर्ग के आरक्षण पर इलाहबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंड पीठ ने रोक लगाते हुए यूपी में निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिए बगैर प्रदेश सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीट को अनारक्षित श्रेणी में रखकर चुनाव कराये। सरकार के आरक्षण विरोधी रवैये को देखते हुए वह दिन दूर नहीं कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को ख़त्म कर दिया जाए, ऐसी स्थिति में विभिन्न दलों के अनुसूचित जाति और जनजाति के जनप्रतिनिधियों की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे पिछड़ा वर्ग के साथ एकजुट होकर आन्दोलन में सहभागी बनें। विभिन्न पार्टियों में उच्च पदों पर विराजमान और भाजपा की नीतियों के ध्वजावाहक पिछड़ा वर्ग के नेताओं की जिम्मेदारी बनती है कि वे संविधान की रक्षा और पिछड़ा वर्ग विरोधी मुद्दे पर अपनी आवाज बुलंद करें। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के. कृष्णा मूर्ति (2010) और विकास कृष्ण राव गवाली (2021) बनाम भारत सरकार में स्पष्ट रूप से राज्य सरकारों को आदेश दिया था कि वह राज्यों में निकाय चुनावों में पिछड़ी जातियों की सीटों को आरक्षित करने के पूर्व त्रिस्तरीय फार्मूले का अनुपालन करेगी, त्रिस्तरीय फार्मूले के अनुसार ओबीसी आरक्षण से पहले निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति के आकलन के लिए आयोग बनाया जाये जो प्रस्ताव बनाएगा एवं दूसरे चरण में सिफारिशों के आधार पर निकाय ओबीसी की संख्या का परीक्षण व सत्यापन करेगा एवं तीसरे चरण में सरकार सत्यापन कराएगी और ध्यान रखेगी कि एससी/ एसटी व ओबीसी के लिए कुल आरक्षित सीटों की संख्या पचास प्रतिशत से ज्यादा ना हो। जिसमें राज्य सरकारों को निकाय चुनावों में ओबीसी को आरक्षण देने के लिए विभिन्न अदालतों के आदेशों के अनुपालन में आयोग गठित कर ट्रिपल-टी फार्मूले का पालन करते हुए आरक्षण सुनिश्चित करना चाहिए था, लेकिन सरकार ने समय रहते सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का अनुपालन नहीं किया और असंवैधानिक अधिसूचना जारी कर दी।
इस सम्बन्ध में सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष एवं पूर्व आईएएस कुंवर कुंवर फ़तेह बहादुर ने अक्टूबर 2021 में केन्द्रीय गृह सचिव एवं पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सभी दलों के सांसदों को एक औचित्यपूर्ण व विस्तृत प्रत्यावेदन भेजते हुए 2021 की जनगणना के साथ-साथ पिछड़े वर्ग की जातिवार जनगणना कराये जाने के लिए मांग की थी। उनका मानना है कि जबतक पूरे देश में पिछड़े वर्ग की जातिवार जनगणना कराके इनकी आबादी की वास्तविक स्थिति की जानकारी नहीं हासिल की जाएगी तबतक पिछड़ा वर्ग के लोगों को राज्यों व केंद्र सरकार द्वारा दिए जा रहे लाभ नहीं मिल सकेंगे। कुंवर फ़तेह बहादुर का मानना है कि जबतक पिछड़ा वर्ग की जातिवार आबादी का पता नहीं चल जाता तबतक ये नहीं मालूम नहीं चलेगा कि इन वर्गों को इनकी आबादी के मुताबिक संसाधनों और सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी मिली है या नहीं। उनका कहना है कि कई बार सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से जानकारी मांगी कि पिछड़ा वर्ग को उनकी आबादी के मुताबिक कल्याणकारी योजनाओं में कितना लाभ दिया गया, चूँकि सरकार के पास पिछड़ा वर्ग की आबादी का जातिवार कोई आंकड़ा नहीं है, जिसकी वजह से सरकार अदालतों में इन वर्गों के पक्ष में कोई ठोस तर्क नहीं दे पाती जिसकी वजह से इन वर्गों को कल्याणकारी योजनाओं समेत सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। इसके अतिरिक्त संस्था के संयुक्त सचिव कृष्ण कन्हैया पाल उच्च न्यायालय लखनऊ खंडपीठ में अधिवक्ता हैं ने खुद सुप्रीम कोर्ट में पिछड़ा वर्ग की जातिवार जनगणना कराये जाने के लिए एक जनहित याचिका भी दायर कर रखी है, जिसपर केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया गया है।
कमल जयंत, वरिष्ठ पत्रकार