नयी दिल्ली, भारत में यौन उत्पीड़न की शिकार हजारों पीड़िताओं को आज भी न्याय का इंतजार है। पहली बार यौन उत्पीड़न की शिकार पीड़ताओं ने सामूहिक रूप से एकजुट होकर अपनी बात रखी।
इनमें से एक पीड़ित 56 वर्षीय भंवरी देवी भी थीं। 25 साल पहले सामूहिक बलात्कार और हिंसा की शिकार हुईं भंवरी देवी को अब भी न्याय का इंतजार है। उन्होंने कहा कि वह इसके लिये लड़ाई जारी रखेंगी। नाराज भरे भाव में भंवरी देवी ने कहा, ‘‘मैं चुप नहीं रहूंगी। जब तक न्याय प्रदर् नहीं मिलता तब तक अपनी आखिरी सांस तक मैं लड़ती रहूंगी।
आज से करीब 26 साल पहले 1992 में राजस्थान की राजधानी जयपुर के निकट भटेरी गांव की महिला भंवरी देवी ने बाल विवाह विरोधी अभियान में हिस्सेदारी की थी। जिसकी उसने बहुत बड़ी कीमत चुकाई थी। भंवरी देवी मामले के बाद कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकने के लिये विशाखा दिशानिर्देश बनाया गया था। यह वर्क प्लेस पर महिलाओं के खिलाफ अत्याचार को लेकर एक कानून है, जिसे विशाखा गाइडलाइंस के नाम से जाना जाता है।
इस मामले में ‘विशाखा’ और अन्य महिला गुटों ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी और कामकाजी महिलाओं के हितों के लिए कानूनी प्रावधान बनाने की अपील की गई थी. इस याचिका के मद्देनजर साल 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा के लिए ये दिशा-निर्देश जारी किए थे और सरकार से आवश्यक कानून बनाने के लिए कहा था। उन दिशा-निर्देशों को विशाखा के नाम से जाना गया और उन्हें विशाखा गाइडलाइंस कहा जाता है।
‘विशाखा गाइडलाइन्स’ जारी होने के बाद वर्ष 2012 में भी एक अन्य याचिका पर सुनवाई के दौरान नियामक संस्थाओं से यौन हिंसा से निपटने के लिए समितियों का गठन करने को कहा था, और उसी के बाद केंद्र सरकार ने अप्रैल, 2013 में ‘सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ वीमन एट वर्कप्लेस एक्ट’ को मंज़ूरी दी थी।
‘विशाखा गाइडलाइन्स’ के तहत आपके काम की जगह पर किसी पुरुष द्वारा मांगा गया शारीरिक लाभ, आपके शरीर या रंग पर की गई कोई टिप्पणी, गंदे मजाक, छेड़खानी, जानबूझकर किसी तरीके से आपके शरीर को छूना,आप और आपसे जुड़े किसी कर्मचारी के बारे में फैलाई गई यौन संबंध की अफवाह, पॉर्न फिल्में या अपमानजनक तस्वीरें दिखाना या भेजना, शारीरिक लाभ के बदले आपको भविष्य में फायदे या नुकसान का वादा करना, आपकी तरफ किए गए गंदे इशारे या आपसे की गई कोई गंदी बात, सब शोषण का हिस्सा है।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी की गई विशाखा गाइडलाइंस के मुताबिक ऐसा जरूरी नहीं कि यौन शोषण का मतलब केवल शारीरिक शोषण ही हो। आपके काम की जगह पर किसी भी तरह का भेदभाव जो आपको एक पुरुष सहकर्मियों से अलग करे या आपको कोई नुकसान सिर्फ इसलिए पहुंचे क्योंकि आप एक महिला हैं, तो वो शोषण है।