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भोपाल गैस कांड, मानव इतिहास की सबसे भयावह गैस त्रासदी

भोपाल, आज भोपाल गैस त्रासदी की बरसी है।3 दिसंबर 1984 की सुबह अपने साथ एक ऐसी काली सुबह लेकर आएगी, इस बात का अंदाजा किसी को नहीं था।आज भी दिलों को दहलाने वाले इस हादसे से भोपाल के लोगखौफजदा है।

3 दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के जेपी नगर में कुछ ऐसा हुआ, जिसने पूरी दुनिया का झकझोर के रख दिया था। इस रात को यहां स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के प्लांट से जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनाइट का रिसाव हुआ, जिससे पूरे शहर में कोहराम मच गया।गैस त्रासदी, मानव इतिहास में अबतक विश्व की सबसे भयावह और दर्दनाक ओद्योगिक त्रासदी में से एक है।गैस के रिसाव से आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 3500 हजारो से ज्यादा लोग मारे गए थे।हालांकि, गैरसरकारी स्रोत मानते हैं कि ये संख्या करीब तीन गुना जयादा थी। सबसे ज्यादा लोग अंधेपन का शिकार हुए। इस हादसे को इतिहास की भीषणतम औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक माना जाता है।

भोपाल गैस त्रासदी की 34वीं बरसी पर एक बार फिर लोगों के जेहन में यूनियन कार्बाइड कारखाने के मालिक वारेन एंडरसन की यादें ताजा कर दी हैं।यूनियन कार्बाइड कारखाने की जहरीली गैस से ही मौतों के मामलों और बरती गई लापरवाहियों के लिए यूनियन कार्बाइड फैक्टरी के मालिक वारेन एंडरसन को मुख्य आरोपी बनाया गया था। वारेन एंडरसन को भारतीय दंड विधान (आईपीसी) की ऐसी गंभीर धाराओं के तहत गिरफ्तार तो किया गया, जिन पर अदालत की इजाजत के बिना जमानत नहीं मिल सकती थी।लेकिन महज चार-पांच घंटे के भीतर इन्हें न सिर्फ जमानत मिल गई, बल्कि इनके लिए भोपाल से तो क्या देश से भागने का इंतजाम कर दिया गया।

इसके बाद इनके खिलाफ अदालतों में सुनवाइयां होती रहीं, अमेरिका से इनके प्रत्यर्पण की कथित कोशिशें भी की जाती रहीं, लेकन ये कभी भारत नहीं लौटे। एंडरसन 1986 में यूनियन कार्बाइड के सर्वोच्च पद से रिटायर हुए और 92 साल की उम्र में 29 सितंबर 2014 को अमेरिका के फ्लोरिडा में इनकी मौत हो गई।

आज भी भोपाल में उस त्रासदी का 346 टन जहरीला कचरा निस्तारण अब भी एक चुनौती बना हुआ है। ये कचरा आज भी हादसे की वजह बने यूनियन कार्बाइड कारखाने में कवर्ड शेड में मौजूद है। इसके खतरे को देखते हुए यहां पर आम लोगों का प्रवेश अब भी वर्जित है।सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कारखाने के 10 टन कचरे का निस्तारण इंदौर के पास पीथमपुर में किया गया था, लेकिन इसका पर्यावरण पर क्या असर पड़ा ये अब भी पहेली बना हुआ है। दरअसल विडंबना तो ये है कि भारत के पास इस जहरीले कचरे के निस्तारण की तकनीक और विशेषज्ञ आज भी मौजूद नहीं हैं।