लखनऊ, उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों की तारीख के ऐलान होते ही बीजेपी का आलीशान किला ढहना शुरू हो गया है और इस किले को गिराने में दलितों, पिछड़ों की मुख्य भूमिका है।
बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक प्रदर्शन केवल और केवल सोशल इंजीनियरिंग के दम पर किया था। छोटी छोटी दलित और पिछड़ी जातियों को अपने साथ जोड़ा था। उन्हे अच्छे दिन के सपने दिखाये थे। लेकिन पांच साल में जो उन्हे मिला उसका परिणाम अब सामने दिख रहा है।
यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री और पिछड़े वर्ग के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी से इस्तीफा देते ही बीजेपी में भूचाल आ गया उनके बाद तीन और विधायकों ने पार्टी को अलविदा कह दिया। बांदा के तिंदवारी से बीजेपी विधायक ब्रजेश प्रजापति, बिल्हौर से भगवती सिंह सागर और तिलहर विधानसभा से विधायक रोशन लाल वर्मा ने इस्तीफा दे दिया है। ये चारों विधायक दलित- पिछड़े समाज से ही आतें हैं।
स्वामी प्रसाद मौर्य ने ट्वीट करते हुए लिखा- दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोजगार नौजवानों एवं छोटे-लघु एवं मध्यम श्रेणी के व्यापारियों की घोर उपेक्षात्मक रवैये के कारण उत्तर प्रदेश के योगी मंत्रिमंडल से इस्तीफा देता हूं। उन्होंने कहा कि अगले दो दिनों में कई और मंत्री, विधायक और पदाधिकारी बीजेपी छोड़कर उनके साथ आ रहे हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य ने केशव मौर्य पर भी तंज कसते हुये कहा कि केशव जी को अपनी दुर्गति पर तरस आना चाहिए और उन्हें अपनी स्थिति का आकलन करना चाहिए।
वहीं, इन विधायकों के इस्तीफे के बाद यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बीजेपी की योगी सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने ट्वीट में लिखा, इस बार सभी शोषितों, वंचितों, उत्पीड़ितों, उपेक्षितों का ‘मेल’ होगा और बीजेपी की बांटने व अपमान करनेवाली राजनीति के खिलाफ सपा की सबको सम्मान देनेवाली राजनीति का इंक़लाब होगा. बाइस में सबके मेल मिलाप से सकारात्मक राजनीति का “मेला होबे”! बीजेपी की ऐतिहासिक हार होगी! सुभासपा नेता ओम प्रकाश राजभर ने ट्वीट में लिखा, सामाजिक न्याय का इंक़लाब होगा-पिछड़ों, दलितों,अल्पसंख्यकों,वंचितों का हक़ लूटने वालों का खदेड़ा होगा। बीजेपी का विकेट गिरना शुरू हो गया है।आगे देखते जाइए कतार लगने वाली है।
देखा जाये तो स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीजेपी पर दलितों, पिछड़ों की उपेक्षा का जो आरोप लगाये उसकी आवाज तो बहुत पहले से आनी शुरू हो गई थी। वैसे भाजपा से दलित पिछड़ों को पहला झटका उस समय ही लग गया था जब 2017 में तो भाजपा ने सरकार बनने पर केशव प्रसाद मौर्य को मुख्यमंत्री बनाने का ख्वाब दिखाकर इस बिरादरी के साथ ही पूरे पिछड़े वर्ग के लोगों को ‘ठग’ लिया था।
जिस केशव प्रसाद मौर्य के चेहरे पर पिछड़े भाजपा की तरफ गोलबंद हुए, उन्हें भाजपा ने डिप्टी सीएम बनाया और उनकी हैसियत सरकार में किसी राज्यमंत्री जितनी ही रह गयी थी। आगे, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच सम्बन्ध कैसे रहे हैं यह भी सर्वविदित है। डिप्टी सीएम रहते हुए सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्हें ‘स्टूल’ पर बैठा देने के बाद निश्चित तौर पर मौर्य, कुशवाहा, शाक्य, सैनी जाति के लोगों सहित पूरा पिछड़ा वर्ग अपमानित महसूस कर रहा था। हकदार होने के बावजूद केशव प्रसाद मौर्य से मुख्यमंत्री की कुर्सी छिन जाने की ‘टीस’ उनकी जाति के लोगों के अन्दर जरूर घर कर गई है।
मीडिया यूपी की भाजपा सरकार में ब्राह्मणों की नाराजगी को मुद्दा बनाकर उसे ‘चर्चा’ के केंद्र में ले आया है, लेकिन सबसे बड़ा वोटबैंक रखने वाला पिछड़ा और दलित समाज 2017 में बीजेपी को वोट देकर कितना उपेक्षित और ठगा हुआ महसूस कर रहा है उसकी मीडिया में चर्चा तक नही हुई? बीजेपी संगठन में भी दलितों, पिछड़ों की नाराजगी को कभी महत्व नही दिया गया और नाही कभी जानने की कोशिश की गई कि उनमें कितनी नाराजगी होगी? उत्तर प्रदेश में सत्ता किस ओर जाएगी इसका निर्णय हमेशा से यूपी का बहुसंख्यक पिछड़ा और दलित समाज ही करता आया है। इसबार भी वह निर्णायक स्थिति में दिख रहा है।
–अनुसंदेश न्यूज सर्विस