लखनऊ, कहा जाता है कि जाति है कि जाती नही । ये बात आम आदमी ही नही अब तो साधू संतों पर भी लागू हो रही है। ये जरूरी नही है कि अगर आप साधू बन गयें हैं तो आपका अपनी जाति से भी मोहभंग हो गया हो। ये बात यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर अक्षरश: लागू होती है।
जाति ना पूछो साधू की, पूछ लीजिए ज्ञान, ये बात संत कबीरदास ने कही थी। अर्थ है कि साधु-संतों की कोई जाति नहीं होती, किसी साधु का आंकलन उसकी जाति से नही बल्कि उनके ज्ञान से कीजिए। लेकिन ये बात यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर लागू नही होती है। योगी आदित्यनाथ का कहना है अपनी जाति पर स्वाभिमान हर व्यक्ति को होना चाहिए। ये बात वो शख़्स बोल रहा है जो साधु है, जो ख़ुद को सांसारिक मोह माया से दूर बताता है। ये जातिवादी बयान उस शख्सियत का है जो भारत के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठा है।
हिंदुस्तान टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से जब ये पूछा गया कि आपके बारे में जब ये कहा जाता है कि आप राजपूतों की पॉलिटिक्स करते हैं तो क्या आपको दुख होता है? इस सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री योगी ने कहा ‘नहीं कोई दुख नहीं होता। क्षत्रिय जाति में पैदा होना कोई अपराध थोड़े है। इस जाति में तो भगवान ने भी जन्म लिया है और बार-बार लिया है। हर व्यक्ति को अपनी जाति पर स्वाभिमान करना चाहिए’।
भारत मे जाति मनुष्य के जन्म से शुरू होती है और मृत्यु तक साथ नही छोड़ती है। ख़ुद को योगी कहने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उर्फ़ ठाकुर अजय सिंह बिष्ट को ख़ुद के ठाकुर होने पर घमंड है । उन्हे ना सिर्फ अपनी जाति पर घमंड है बल्कि वो इस जातीय घमंड को जायज़ तक ठहराते हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ये बयान जन्म के आधार पर छोटा-बड़ा बताने वाली जातिवादी व्यवस्था को सही ठहरा रहा है। और ये संदेश दे रहा है कि जाति के आधार पर व्यक्ति को गर्व और अपमान महसूस करना होगा।
इसका अर्थ है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे साधु-संत अपना घर तो छोड़ सकतें हैं, पिता की मृत्यु होने पर घर न जाने का दिखावा भी कर सकतें हैं क्योंकि वे साधु हैं उन्होने घर परिवार त्याग दिया है पर जाति नही त्याग सकतें हैं। घर संसार छूट गया पर जाति का मोह नही छूटा है। क्योंकि उन्हे ख़ुद के ठाकुर होने पर घमंड है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे साधुओं का धर्म भी होता है , उनकी जाति भी होती है और उनकी राजनीति भी होती है। फिर ये कैसे मान लिया जाये कि ये राजनीति जातिवादी नही होगी।
योगी आदित्यनाथ का ’80 बनाम 20′ वाला बयान ख़ूब सुर्ख़ियों में है। दिसंबर 2021 में दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ यूपी में 26% डीएम ठाकुर, 11% ब्राह्मण, 5% दलित हैं जबकि सिर्फ एक डीएम यादव है। 5 % से भी कम आबादी वाले ठाकुरों के 26 % डीएम योगी ने बना दिये। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जातिवादी नही हो सकतें हैं। जातिवादी तो विश्वनाथ प्रताप सिंह, मुलायम सिंह, मायावती और अखिलेश यादव जैसे वे नेता हैं जो समाज के दबे-कुचले लोगों के उत्थान और अपमान की बात करते हैं, उनकी हकमारी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हैं ।
इस विषय पर आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह की प्रतिक्रिया है-
ये देखिये आदित्यनाथ जी ने साफ़ कर दिया की कोई भी इनको कहे की “ये सिर्फ़ क्षत्रियों के नेता हैं तो इनको बुरा नही लगता”
आपको तो 24 करोड़ लोगों का नेता होना चाहिये आदित्यनाथ जी।
क्या सबका साथ सबका विकास का नारा दिखावा मात्र है? pic.twitter.com/pqky6jR8pi— Sanjay Singh AAP (@SanjayAzadSln) January 29, 2022