गोरखपुर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंदिरों व मठों की बड़ी भूमिका का आह्वान करते हुये कहा है कि वे केवल पूजा पाठ तक सीमित न रहें।
उन्होने कहा कि मंदिरों और मठों को केवल पूजा पाठ तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिए
मुख्यमंत्री गोरखनाथ मन्दिर में ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 125वीं जयंती व 50वीं पुण्यतिथि और महंत अवेद्यनाथ की जन्मशताब्दी व 5वीं पुण्यतिथि पर आयोजित समारोह के उद्घाटन सत्र में राष्ट्रीय पुनर्जागरण और सन्त समाज विषय पर आयोजित संगोष्ठी को सबोधित कर रहे थे।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि मंदिरों और मठों को केवल पूजा पाठ तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि इन स्थलों को राष्ट्रीय भावना के कार्यो में भी सबसे आगे रहना चाहिए।
उन्होने कहा है कि भारत में संतों की परम्परा बहुत ही समृद्धशाली और प्राचीन है।
अपने आध्यात्मिक चेतना से संत-समाज राष्ट्र को सुषुप्ता अवस्था से जागृत अवस्था में लाने के लिए सदैव प्रयत्नरत रहा है।
संतों की यह परंपरा न केवल मनुष्य अपितु जीवमात्र का मार्ग प्रशस्त करती है।
योगी ने कहा कि जब भी लोक-कल्याण की बात आती है तो संत-समाज सबसे आगे रहता है।
महर्षि विश्वामित्र एवं वशिष्ट के लोक कल्याणकारी कार्यों का उल्लेख करते हुए श्री महंत जी ने कहा कि जब रावण जैसे आतंकवादी आर्यावर्त को नष्ट करने के लिए तत्पर हो रहे थे।
उस समय देश के दो शक्तिशाली राष्ट्र मिथिला और अयोध्या को इस बात की चिंता नहीं थी।
सर्वप्रथम महर्षि विश्वामित्र को चिंता व्याप्त हुई और उन्होंने अपने दृष्टि से जान लिया कि अब मिथिला और अयोध्या को एक होना है तथा राम को आगे आकर राष्ट्र की रक्षा करनी है।
इसलिए उन्होंने यज्ञ के बहाने से श्रीराम और लक्ष्मण को आगे लाकर राष्ट्र रक्षा का कार्य किया।
यह परम्परा अनवरत बनीं रहे इसके लिए संत परम्परा ने शास्त्रों की सरल व्याख्या कर समाज को एक करने का काम किया।
एक तरफ महर्षि विश्वामित्र ने राम के चरित्र का उपयोग किया तो दूसरी तरफ महर्षि वाल्मीकि ने उनके चरित्र को अपने रामायाण में निरूपित कर समाज के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया।
महर्षि वेदव्यास ने भारत की परम्परा को दुनिया के सामने रखते हुए कहा कि महाभारत में जो भी कुछ है वही सम्पूर्ण संसार में है।
अर्थात् संपूर्ण संसार का अध्ययन महाभारत का अध्ययन करने से हो जायेगा।
शंकराचार्य को याद करते हुए उन्होंने कहा कि एक सन्यासी को लगा कि भारत कई टुकड़ों मे बटा है तो वह केरल से निकलकर भारत के चारों कोनों में पीठ स्थापित कर भारत को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया।