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करीमीन मछली के जीरे का व्यावसायिक उत्पादन शुरू

नयी दिल्ली , बेहद लजीज करीमीन ( पर्ल स्पॉट फिश ) मछली के उत्पादन को बढ़ावा देकर किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से केरल में वैज्ञानिक ढंग से इसके जीरे (बीज) का उत्पादन शुरू कर दिया गया है ।

समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ( एमपीडा) बहु प्रजाति मत्स्य पालन कॉम्प्लेक्स विलरपदम में करीमीन के जीरे का उत्पादन शुरू कर दिया गया है और अब इसे सालों भर किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा । इससे न केवल लोगों को बेहद स्वादिष्ट मछली का जायका मिल सकेगा बल्कि उनकी आय में भी वृद्धि होगी ।

एमपीडा के अध्यक्ष के. एस श्रीनिवास ने हाल में केरल के इस राजकीय मछली के जीरे की बिक्री की शुरुआत की । इस मछली के जीरे का व्यावसायिक उत्पादन शुरू होने से सालों भर यह मिल सकेगा और लगातार इसका पालन जारी रहेगा जिससे इसके उत्पादन में वृद्धि होगी । केरल सरकार ने वर्ष 2010 में इस कीमती मछली करीमीन को राजकीय मछली घोषित किया था ताकि इसका अत्यधिक दोहन नहीं किया जा सके । यहां आने वाले पर्यटक इस मछली को विशेष पसंद करते हैं जिससे इसका आर्थिक महत्व बढ़ जाता है ।

केरल के किसान करीमीन का परम्परागत तलाब में पालन करते है जिसका मूल्य उन्हें 500- 600 रुपए प्रति किलो आसानी से मिल जाता है । यह मछली छह से आठ माह के दौरान तैयार हो जाती है । बड़े पैमाने पर इसका पालन होने से इसके निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा । इससे पहले करीमीन के जीरे को वैज्ञानिक ढंग से तैयार नहीं किया जाता था और किसान परम्परागत तरीके से इसे संग्रहित करते थे जिसके कारण इसका अत्यधिक दोहन भी हो जाता था ।

श्री श्रीनिवास ने बताया कि इस समस्या को देखते हुए करीमीन के जीरे का वैज्ञानिक ढंग से और व्यावसायिक पैमाने पर उत्पादन का निर्णय लिया गया । इससे किसानों को सालों भर इसका जीरा मिल सकेगा और निर्यात को भी बढ़ावा मिल सकेगा । पर्ल स्पॉट फिश देसी प्रजाति की मछली है जो देश के पूर्वी और दक्षिण पश्चिम तटीय क्षेत्र में बहुतायत में पाई जाती है । तालाबों में इसका पालन ब्रेकीस और ताजे पानी दोनों में किया जा सकता है । इसके जीरे का मूल्य आकार के अनुसार प्रति मछली आठ से दस रुपये तक है ।

एमपीडा ने अनुसंधान एवं विकास तथा पश्चिमी तट में मत्स्य पालन में विविधता लाने के लिए राजीव गांधी सेंटर फॉर एक्वाकल्चर की स्थापना की थी । इसका उद्देश्य ब्लैक टाइगर झींगा के उत्पादन को बढ़ावा देना तथा तेल्पिया , एशियन सीवास और पॉन्पनो मछली के जीरे के उत्पादन को बढ़ावा देना था । यह संस्थान अब तक विभिन्न प्रजातियों के करीब 1.20 करोड़ जीरे की किसानों को आपूर्ति कर चुका है । श्री श्रीनिवास ने बताया कि भविष्य में कुछ अन्य किस्मों की मछलियों के जीरे की उत्पादन की भी योजना है ।