नयी दिल्ली, आम चुनाव से ठीक पहले किसानों के कर्ज माफी के वादे के साथ भारतीय जनता पार्टी से तीन राज्यों को छीनने में कामयाब रही कांग्रेस इस बार उसे केंद्र की सत्ता से बेदखल करने के लिए न्यूनतम आय योजना न्याय लेकर आयी लेकिन जनता ने उसकी इस लुभावनी योजना को खारिज कर दिया और देश की सत्ता एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही सौंप दी।
देश के हर गरीब परिवार को न्याय योजना के तहत हर साल 72 हजार रुपए देने के वादे के साथ चुनाव मैदान में उतरी कांग्रेस ने मतदाताओं को लुभाने का खूब प्रयास किया। उसे पूरा भरोसा था कि जिस तरह से सत्ता में आने के बाद किसानों का कर्ज दस दिन में माफ करने के वादे के बल पर तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा को शिकस्त दी थी उसी तर्ज पर न्याय योजना के बल पर वह भाजपा को केंद्र की सत्ता से बाहर कर देगी लेकिन जनता ने उसके इस सपने को चकनाचूर कर दिया।
पिछले चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करने वाली कांग्रेस ने इस चुनाव में अपनी रणनीति में जबरदस्त बदलाव किया। कांग्रेस अध्यक्ष ने इस चुनाव के बीच में अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को सक्रिय राजनीति में उतार कर महासचिव नियुक्त किया और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया। इसके बाद उन्होंने न्याय योजना लागू करने की घोषणा की और दिग्विजयसिंह, शीला दीक्षित, सुशील कुमार शिंदे, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मीरा कुमार, तारिक अनवर, नाना पटोले, हरीश रावत, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, वी के हरिप्रसाद, वीरप्पा मोइली जैसे दिग्गज नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा।
पार्टी ने राज बब्बर, उर्मिला मतोंडकर, शत्रुघ्नसिन्हा जैसे फिल्मी सितारों पर भी भरोसा जताया और उन्हें चुनाव मैदान में उतार दिया लेकिन मोदी लहर के सामने पार्टी ने घुटने टेक दए और उसकी रणनीति धरी की धरी रह गयी। पार्टी के कई पूर्व मुख्यमंत्री भी इस चुनाव में करिश्मा नहीं दिखा पाये। पार्टी ने गत दिसंबर में राजस्थानए मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा को हराकर सत्ता में वापसी की थी लेकिन इन तीनों राज्यों में उसे मुंह की खानी पड़ी है। पिछली बार की तरह इस बार भी कई राज्यों में उसे खाता खोलने के लाले पड़ गये। बिहार और कर्नाटक में उसके गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा।
पिछले चुनाव में मात्र 44 सीट जीतने वाली कांग्रेस इस बार भी 50 के आंकड़े को पार नहीं कर पायी और वह लोकसभा में विपक्ष के नेता पद का हासिल करने की स्थिति में नहीं पहुंच सकी क्याेंकि विपक्ष के नेता पद का दर्जा हासिल करने के लिए दस फीसदी सीटें जीतना आवश्यक है। लोकसभा में 542 सीटें हैं और विपक्ष का नेता का दर्जा पाने के लिए किसी पार्टी को कम से कम 54 सीटों पर जीत हासिल करना आवश्यक है। मोदी लहर के सामने कांग्रेस की एक नहीं चली और खुद पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी परंपरागत उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट से चुनाव हार गये। श्री गांधी को अमेठी में अपनी हार का शायद पहले ही एहसास हो गया था इसलिए उन्होंने अमेठी के साथ ही केरल की वायनाड सीट से भी नामांकन किया। श्री गांधी 2004 से संसदीय चुनाव लड़ रहे हैं और पहली बार उन्होंने दो जगह से चुनाव लड़ने का फैसला लिया। श्री गांधी का वायनाड जाना कांग्रेस और उनके फायदे में गया। श्री गांधी वहां से खुद तो चुनाव जीते हैं और पार्टी को राज्य की 20 में से 15 सीटों पर जीत मिली है।