लॉकडाउन की वजह से बगैर एक पाई खर्च किये ये काम हुआ संभव
प्रयागराज, दशकों तक कड़ी मशक्कत और हजारों करोड़ रूपये खर्च कर सरकारें जिन नदियों को प्रदूषण से निजात नहीं दिलायी पायी, उस काम को वैश्विक महामारी कोरोना से बचाव के लिये जारी लाकडाउन ने महज 50 दिनों में बगैर एक पाई खर्च किये संभव कर दिखाया है।
विकास की अंधी होड़ में पर्यावरण से खुला खिलवाड़ करने वाली मानव जाति जान बचाने के लिये इन दिनों घरों की चारदिवारी में कैद है और उधर, प्रकृति स्वच्छंद रूप से खुद को संवारने में व्यस्त हो चली है। प्रकृति के अनुपम सौंदर्य का महत्वपूर्ण हिस्सा नदियां भी इससे अछूती नहीं है। गंगा और यमुना समेत देश की अधिसंख्य नदियों का स्वच्छ दिखता जल और इसमे अठखेलियां करते जलचर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) क्षेत्रीय इकाई के सहायक वैज्ञानिक प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि मापदंडों के आधार पर जल में बॉयो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) प्रति लीटर जल में तीन या तीन से कम मिली ग्राम होनी चाहिए। घुलनशील ऑक्सीजन (डीओ) की मात्रा एक लीटर जल में 5 मिलीग्राम से अधिक और पीएच वैल्यू 6.5 से 8.5 के बीच होनी चाहिए। इन परिस्थितियों में गंगा का जल बिल्कुल शुद्ध रहता है जो पीने और जलचरों के लिए भी संजीवनी दायक होता है।
बोर्ड से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार लॉकडाउन से पहले 13 मार्च को प्रयागराज के रसूलाबाद घाट में पीएच वैल्यू (9.6), शास्त्रीपुल (9.5), संगम घाट (9.0), छतनाग (8.5) और यमुना के सरस्वती घाट (8.0) पाया गया जबकि 19 अप्रैल को इन्ही घाटों पर यह मात्रा दो मिलीग्राम से लेकर 1.3 मिलीग्राम कम पायी गयी। यहां दिलचस्प है कि बीओडी की मात्रा दो और तीन मिली ग्राम के बीच रही। इन घाटों पर बीओडी की मात्रा 2.8, 3.0, 2.7, 2.4 और 2.4 की तुलना में 2.8, 3.2, 3.1, 2.8 और 2.2 मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया है। इसके साथ दोनो के बीच का पीएच वैल्यू 8.24 के बीच रहा।
श्री श्रीवास्तव ने बताया कि बीओडी ऑक्सीजन की वह मात्रा है जो पानी में रहने वाले जीवों को तमाम गैर.जरूरी ऑर्गेनिक पदार्थों को नष्ट करने के लिए चाहिए। बीओडी जितनी ज्यादा होगी पानी का ऑक्सीजन उतनी तेजी से खत्म होगा और बाकी जीवों पर उतना ही बुरा असर पड़ेगा। पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा ज़्यादा है तो इसका मतलब है कि पानी में प्रदूषण कम है। क्योंकि जब प्रदूषण बढ़ता है तो इसे ख़त्म करने के लिए पानी वाले ऑर्गनिज़्म को ज़्यादा ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है इससे डीओ की मात्रा घट जाती है।