“राजा नहीं फकीर है भारत की तकदीर है”. 80 के दशक के आखिरी सालों में हिंदी बोलने वाले इलाकों में ये नारा खासा बोला जाता था. इसी के साथ भारत के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह भारतीय राजनीति के पटल पर नए मसीहा और क्लीन मैन की इमेज के साथ अवतरित हुए थे.
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह कई कारणों से याद किए जाते हैं जो उन्हें एक अलग ही किस्म के राजनेता की श्रेणी में पहुंचाते हैं कांग्रेस के खास और इंदिरागांधी और राजीव गांधी के करीबी नेताओं में से एक रहे व्ही पी सिंह कांग्रेस से ऐसे अलग हुए कि उन्होंने कांग्रेस को सत्ता से भी बाहर कर दिया और चुनाव जीत कर खुद प्रधानमंत्री भी बने, लेकिन विवादों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा.
विश्वनाथ प्रताप सिंह का जन्म 25 जून 1931 को उत्तरप्रदेश के इलाहबाद (अब प्रयागराज) जिले में राजा बहादुर राय गोपाल सिंह के पुत्र के रूप में हुआ था, जो मंडा रियासत के राजा थे. कॉलेज के समय ही वे छात्र संगठन के उपाध्यक्ष बने. 1957 में उन्होंने भूदान आंदोलन में भाग लेते हुए अपनी जमीनें दान कर जिसका विवाद इलाहबाद उच्च न्यायालय तक पहुंच गया था.
राजनीति में उनकी गहरी रुचि शुरू से ही रही थी और 1969 में ही वे कांग्रेस से जुड़ गए और 1980 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बन गए थे. इसके बाद 1983 में केंद्रीय वाणिज्य मंत्री भी बने. वे उस समय प्रधानमंत्री इंदिरागांधी के काफी करीबी नेताओं में गिने जाते थे. बाद में इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद वे देश के वित्तमंत्री तक बने.