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धार्मिक और जातीय मामलों में दोहरे मापदंड अपना रही सरकार

लखनऊ, हाल ही में हजरत मोहम्मद पैगम्बर साहब की शान में गुस्ताखी को लेकर भारतीय मुस्लिमों के साथ ही 15 से अधिक मुस्लिम देशों की आपत्ति के बाद भारतीय जनता पार्टी को अपने राष्ट्रीय प्रवक्ताओं के खिलाफ कार्रवाई के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि पार्टी प्रवक्ताओं के खिलाफ हुई कार्रवाई को लेकर भाजपा के आम कार्यकर्ताओं व उनकी विचारधारा के लोगों में आक्रोश है, भाजपा नेतृत्व ने पहली बार अपने नेताओं द्वारा इस्लाम धर्म और उनके पैगम्बर का विरोध करने वाले नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की है, लेकिन सरकार के स्तर पर इन लोगों के विरुद्ध वैमनस्यता पैदा करने के लिए अबतक उनके खिलाफ वैधानिक कार्रवाई करते हुए गिरप्तारी नहीं की गयी, केवल उन्हें भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित और निष्कासित किया गया है, इनके विरुद्ध आपराधिक मामलों में कार्रवाई व गिरप्तारी ना होने से लोगों में आक्रोश भी है, वहीँ मोहम्मद पैगम्बर साहब पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल ने धमकी मिलने की बात कही तो उन्हें और अधिक महत्त्व देते हुए उनकी सुरक्षा बढ़ा दी गयी। लेकिन ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर दिए गए बयान में एक प्रो. के खिलाफ तत्काल मुक़दमा दर्ज हो गया, क्योंकि वह दलित समाज से ताल्लुक रखते हैं, जबकि उनके द्वारा दी गयी तहरीर पर आजतक मुक़दमा दर्ज नहीं किया गया। सरकार और पुलिस प्रशासन के इस दोहरे मापदंड को लेकर इनकी निष्पक्षता पर सवाल उठने लगे हैं। कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म, जाति, लिंग, क्षेत्र और भाषा आपत्तिजनक बात करता है तो उसके खिलाफ कठोरतम कार्रवाई की जानी चाहिए, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली क्यों ना हो, किन्तु इस समय यह देखा जा रहा है कि केंद्र व यूपी सरकार द्वारा निष्पक्षता से कार्रवाई नहीं की जा रही है।

देश व यूपी में दोबारा भाजपा की सरकार बनने के बाद से पूरे देश में इन दिनों दलित और पिछड़ा वर्ग की जातियों और एक धर्म विशेष के खिलाफ नफ़रत फ़ैलाने के मामले आम होते जा रहे हैं, यूपी की राजधानी लखनऊ में एक तहसीलदार का खुलेआम दलित महिलाओं के खिलाफ जातिसूचक अभद्र व अश्लील और अमानवीय टिप्पणी करने वाला वीडियो वायरल हुआ, बावजूद इसके इनके खिलाफ महीनों मशक्कत के बाद कानूनगो द्वारा हलकी धाराओं में एफआईआर करायी गयी, जबकि दलित समाज के एक अधिवक्ता द्वारा पुलिस आयुक्त लखनऊ से मिलकर उक्त मामले में तहरीर दी गयी, उसपर आजतक कोई कार्रवाई नहीं की गयी। वहीँ लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. रविकांत ने टीवी डिबेट में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर इतिहासकार सीतारमैया की पुस्तक के हवाले से अपना पक्ष रखा था, इस मामले को लेकर भाजपा के विद्यार्थी परिषद् ने विश्वविद्यालय परिसर में प्रोफेसर पर हमला करने के साथ ही अभद्रता भी की और प्रोफ़ेसर के खिलाफ धार्मिक भावना भड़काने के मामले में मुक़दमा भी दर्ज करा दिया, जबकि प्रो. रविकांत ने पुलिस आयुक्त लखनऊ से मिलकर नामजद लोगों के खिलाफ तहरीर दी, किन्तु अभीतक उसपर कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं हुई जो अप्पतिजनक है और ये भाजपा सरकार की दोहरी मानसिकता का परिचायक है, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर रतनलाल ने प्रो. रविकांत पर हुए सरकारी उत्पीड़न के मामले में अपना पक्ष रखा तो उन्हें रात में धार्मिक भावना भड़काने के आरोप में गिरप्तार कर लिया गया, इसके विरोध में उनके पक्ष में दलित और पिछड़ा वर्ग के लोग एकजुट होकर आंदोलित हो गए, हालाँकि अदालत से उन्हें राहत मिल गयी।

वैसे इस सम्बन्ध में सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष व पूर्व आईएएस कुंवर फ़तेह बहादुर का कहना है कि तथ्यों के आधार पर अपना पक्ष रखने वाले दलित समाज के दो प्रोफेसरों के खिलाफ कार्रवाई करने में सरकार ने कोई देरी नहीं की, जबकि प्रो. रविकांत के साथ मारपीट, अभद्रता के मामले में अबतक पुलिस ने मुक़दमा तक दर्ज नहीं किया, सरकार बहुजन समाज की ओर से होने वाली किसी भी तथ्यपूर्ण टिप्पणी पर भी लोगों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करके कार्रवाई करती है, वहीँ मुस्लिम समाज के लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला भड़काऊ बयान देने वाले भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता पर अबतक ना ही किसी भाजपा शासित राज्य में मुक़दमा दर्ज हुआ और ना ही उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की गयी, देश के मुस्लिम लगातार मोहम्मद पैगम्बर साहब के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, भाजपा नेतृत्व ने उन्हें पार्टी से तो निलंबित कर दिया है, लेकिन अभीतक सरकारी स्तर पर कोई कार्रवाई न किया जाना सरकार और पुलिस प्रशासन की दोहरी मानसिकता और निष्पक्षता पर सवाल उठना लाजिमी है। कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म, जाति, लिंग, क्षेत्र और भाषा पर आपत्तिजनक बात करता है तो उसके खिलाफ कठोरतम कार्रवाई की जानी चाहिए, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली क्यों ना हो, किन्तु इस समय यह देखा जा रहा है कि केंद्र व यूपी सरकार द्वारा निष्पक्षता से कार्रवाई नहीं की जा रही है। जिसकी वजह से वर्ग विशेष में भयंकर आक्रोश पैदा हो रहा है।

कमल जयंत (वरिष्ठ पत्रकार)।