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सरकार को नही भा रही कोरोना संक्रमण पर एनालिटिकल रिपोर्टिंग, निशाने पर मीडिया ?

नयी दिल्ली, सरकार को कोरोना संक्रमण पर मीडिया रिपोर्टिंग नही भा रही है। मोदी सरकार को मीडिया द्वारा कोरोना संक्रमण के नियंत्रण और प्रबंधन की दिशा में सरकार के प्रयासों पर सवालिया निशान उठाना बहुत खराब लग रहा है।

केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने कोविड-19 के नियंत्रण और प्रबंधन की दिशा में सरकार के प्रयासों पर सवालिया निशान उठाने वाली मीडिया में आ रही रिपोर्टों को निराधार करार दिया है।

स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में रविवार को कहा गया कि मीडिया के एक हिस्‍से में कुछ खबरें छपी हैं, जिनमें तकनीकी विशेषज्ञों के ज्ञान के बिना कोविड-19 के नियंत्रण और प्रबंधन की दिशा में सरकार के प्रयासों के बारे में चिंता व्‍यक्‍त की गई है और इस तरह के आरोप बेबुनियाद और निराधार है।

मंत्रालय ने कहा कि ये आशंकाएं और आरोप बेबु‍नियाद और निराधार हैं। सरकार कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए तकनीकी और रणनीतिक जानकारी, वैज्ञानिक विचारों और कार्य-विशिष्ट मार्गदर्शन के लिए विशेषज्ञों के साथ लगातार परामर्श कर रही है। कोविड​​-19 के लिए एक राष्ट्रीय कार्य बल (एनटीएफ) का गठन सचिव डीएचआर-और-डीजी-आईसीएमआर द्वारा अध्‍यक्ष के रूप में नीति आयोग सदस्य (स्वास्थ्य) और सचिव (स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण) और सचिव (डीएचआर) सह अध्यक्षों के रूप में किया गया है। एनटीएफमें सरकार और सरकार के बाहर के तकनीकी/ क्षेत्र विशेषज्ञों सहित 21 सदस्य शामिल हैं। कार्य बल की प्रमुख विशेषज्ञता सार्वजनिक स्वास्थ्य और/या महामारी विज्ञान है। कोविड-19 महामारी की जटिलता और निहितार्थ को देखते हुए, इस समूह में मेडिसिन, वायरोलॉजी, फार्माकोलॉजी और कार्यक्रम कार्यान्वयन क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं।
इसके अलावा, कार्य बल ने चार विशेषज्ञ समूह गठित किए हैं। विशेषज्ञ समूहों में पूरी तरह से महामारी और निगरानी (13 सदस्‍य) और संचालन अनुसंधान (15 सदस्‍य) के सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्र के सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य और महामारी विशेषज्ञ शामिल हैं।
कार्य बल की 20 बैठकें हो चुकी हैं और उसने व्‍यवस्थित ढंग से महामारी से निपटने में वैज्ञानिक और तकनीकी योगदान दिया है। अन्‍य योगदानकर्ताओं में, कार्य बल ने जांच, रोकथाम, इलाज और निगरानी के बारे में दिशा-निर्देश जारी किए हैं। एनटीएफ के अलावा स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय ने विशेषज्ञों के एक समूह का गठन किया है, जिसमें सदस्‍य के रूप में सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञ शामिल हैं।

बयान में कहा गया है कि मीडिया का एक वर्ग महामारी के बारे में भारत के दृष्टिकोण के संबंध में भी निर्णय ले रहा है। लॉकडाउन पर फैसला कोविड-19 मामलों की तेजी से वृद्धि की पृष्ठभूमि में लिया गया था। मामलों की दोगुनी होती दर निचले स्‍तर पर आ गई थी, जो मामलों की संख्‍या अधिक होने और उच्‍च मृत्‍यु दर के खतरे की ओर इशारा कर रही थी जैसाकि कई पश्चिमी देशों ने अनुभव किया था। हमारी स्वास्थ्य प्रणाली जल्द ही कोविड-19 रोग को पराजित कर देगी,यह हकीकत लग रहा है।
राष्‍ट्र के सामने जितनी तेजी से हालात बदले हैं उसके साथ गति बनाए रखने के लिए नीतियों और रणनीतियों को जांचने की आवश्‍यकता है। यह वायरस नया है, अभी तक इसके बारे में कुछ भी अभी पता नहीं है। सरकार उभरती हुई जानकारी और अनुभव के आधार पर रणनीति का पूर्ण विवरण ले रही है।
जैसा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य में अच्छी तरह से जाना जाता है, महामारी के विभिन्न चरणों में अलग-अलग प्रतिक्रिया होती है। वास्तव में, बारीक, चरण-वार प्रतिक्रिया एक संतुलित स्वास्थ्य प्रणाली की सकारात्मक विशेषता है। डब्ल्यूएचओ और वैश्विक स्वास्थ्य समुदाय के लोगों ने कोविड​​-19 के लिए भारत के सक्रिय और प्रथम दृष्टिकोण की सराहना की है। सभी राज्य सरकारों के बीच लॉकडाउन पर सहमति थी।
सरकार ने पहले ही लॉकडाउन के प्रभाव और लाखों संक्रमणों और हजारों मौतों को रोकने के लिए अन्य प्रतिबंधों के प्रभाव के साथ ही स्वास्थ्य प्रणाली और लोगों की तैयारियों में भारी लाभ के बारे में जानकारी साझा कर दी थी। ब्रिटेन, इटली, स्पेन और जर्मनी जैसे देशों की तुलना में, भारत में 17.23 मामलों/लाख आबादी और 0.49 मौतों/लाख आबादी (डब्ल्यूएचओ की स्थिति के अनुसार 6 जून 2020 के अनुसार) सबसे कम मामले दर्ज किए गए हैं।

सरकार का मीडिया में आ रही रिपोर्टों को निराधार करार देना कहां तक ऊचित है। और खासकर उन रिपोर्टों को जो सरकार की विफलताओं को दर्शा रहीं हैं। इससे एक बात स्पष्ट है कि सरकार चाहती है कि कोविड-19 के नियंत्रण और प्रबंधन की दिशा में मीडिया केवल सरकार द्वारा किये जारहे कार्यों का प्रचार करे, उसका लोगों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है और उसके प्रयास कितने सफल हैं या असफल इस पर चर्चा न करे। सरकार द्वारा अपने बचाव मे विशेषज्ञों की संख्या गिनवा देना पर्याप्त नही है। जरूरत इस बात की है कि कोरोना से जंग मे ये कितने प्रभावी सिद्ध हो रहें हैं।

देश मे लाकडाऊन की शुरूआत से लेकर आज तक अनेकों ऐसे विषय हैं जिस पर मीडिया मे चर्चा सरकार को निश्चित तौर पर चुभती है। जो अखबार, टीवी चैनल, डिजिटल न्यूज चैनल इन पर चर्चा करतें हैं वह सरकार के निशाने पर आ जातें है। कोरोना काल के दौरान तमाम पत्रकार सरकार के गुस्से का शिकार भी हुयें हैं। लाकडाऊन से पूर्व अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्टों पर यात्रियों की जांच और उड़ान पर प्रतिबंध, देश मे लाकडाउन लगाने मे हुई देऱी , 68 दिन लंबा लाकडाऊन लागू करने से पूर्व दिया गया चार घंटे का समय, डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की किट और सुरक्षा संबंधी मांगों को लेकर लगातार जारी प्रदर्शन, कोरोना संक्रमितों के इलाज की बदहाल व्यवस्था, अस्पतालों की बुरी स्थिति, प्रवासी मजदूरों की पैदल यात्रा और दर्दनाक मौतें, ट्रेनों का मनमानी चलना, छिनते रोजगार और भूख से तड़फते लोग, शराब के ठेकों को खोलने का आदेश, गुटखा/ पान मसाला पर लगी रोक को हटाना, यूपी मे कांग्रेस की 1000 बसों को मंगाने के दो दिन बाद वापस करना, कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू की गिरफ्तारी, कोरोना संक्रमण बढ़ने पर लाकडाऊन खोलना, गैर कोरोना बीमारियों के इलाज के लिये मरीजों का दर दर भटकना और मौत का शिकार होना आदि ऐसे मुद्दे हैं, जिस पर सरकार फंसती नजर आती है। अब इन पर मीडिया रिपोर्टिंग न करे तो आखिर क्या करे?