नई दिल्ली, नवरात्रि के बाद दसवें दिन विजयादशमी का त्योहार मनाया जाता है, जिसे दशहरा कहते हैं। इस दिन परंपरा अनुसार रावण के पुतले का दहन कर, असत्य पर सत्य की विजय का पर्व मनाया जाता है। हमारी संस्कृति में भले ही रावण को खलनायक के रूप में देखा जाता हो, लेकिन हमारे ही देश में कुछ स्थान ऐसे भी हैं, जहां रावण का दहन नहीं बल्कि उसका पूजन किया जाता है।
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इतना ही नहीं कुछ जगह ऐसी भी हैं जहां पर रावण, मेघनाथ और कुंभकरण का पुतला तक जलाना निषेध है। इसके अलावा कुछ जगह ऐसी भी हैं जहां रावण की पूजा होती है और दशहरा वाले दिन उसके निधन पर शोक मनाया जाता है। आप सभी इस बात को भली भांति जानते हैं कि रावण जैसा विद्वान आज तक दूसरा कोई नहीं हुआ। इसके अलावा उसकी बराबर शिवभक्त भी कोई नहीं हुआ है। रावण को लेकर कई तरह की बातें कही जाती हैं, लेकिन आप इनके बारे में कितना कुछ जानते हैं। यदि नहीं जानते हैं तो आज हम आपको दशहरा और रावण से जुड़ी कुछ ऐसी बातों के बारे में बताएंगे जिन्हें जानकर आप भी निश्चित तौर पर कहेंगे कि अच्छा ऐसा भी होता है।
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राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ग्रेटर नोएडा से 10 किलोमीटर दूर है रावण का पैतृक गांव बिसरख। यहां न रामलीला होती है, न ही रावण दहन किया जाता है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। मान्यता यह भी है कि जो यहां कुछ मांगता है, उसकी मुराद पूरी हो जाती है। इसलिए साल भर देश के कोने-कोने से यहां आने-जाने वालों का तांता लगा रहता है। साल में दो बार मेला भी लगता है। इस गांव में शिव मंदिर तो है, लेकिन भगवान राम का कोई मंदिर नहीं है।
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रावण के पैतृक गांव नोएडा जिले के बिसरख में दशहरे के दिन उदासी का माहौल रहता है। यहां पर रावण का पुतला जलाना अपशकुन माना जाता है। माना जाता है कि रावण के पिता विशरवा मुनि के नाम पर ही गांव का नाम पड़ा। गांव में रावण का मंदिर बना हुआ है। मान्यता है कि रावण के पिता विशरवा मुनि ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बिसरख गांव में अष्टभुजा धारी शिवलिग स्थापित कर मंदिर का निर्माण किया था। पूर्व में यह क्षेत्र यमुना नदी के किनारे घने जंगल में आच्छादित था।
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दशहरा पर्व पर रावण का पुतला फूंके जाने की परंपरा तो देशभर में मिलती है। इससे इतर कौशांबी के नारा गांव में रावण की शवयात्रा निकाली जाती है। यह परंपरा यहां दशकों से चली आ रही है। इसके गवाह बनते हैं आसपास के कई गांवों से हजारों श्रद्धालु। नवरात्र में रामलीला का मंचन नारा गांव में होता है। विजयदशमी के दिन मेला लगता है और शाम को रावण दहन होता है। फिर सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद रात करीब 12 बजे रावण की अर्थी निकाली जाती है। ग्रामीणों ने बताया कि इसकी पहल गांव के ही देउवा बाबा ने शुरू की थी। उन्होंने इसे घइयल का जुलूस नाम दिए था, जो आज भी जारी है। इसमें एक व्यक्ति को चारपाई पर लिटा दिया जाता है और उसके ऊपर कफन व फूलमाला डाला जाता है। इसके बाद शव यात्रा पूरे गांव में घुमाई जाती है। इस दौरान जय श्रीराम के उद्घोष के माध्यम से असत्य पर सत्य की जीत की सीख दी जाती है।
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लुधियाना जिले में स्थित दोराहा के साथ लगते कस्बा पायल में बना रावण का 25 फुट ऊंचा बुत अपनेआप में इतिहास समेटे हुए हैं। 180 साल पुराना यह बुत दशहरे के दिन खास आकर्षण का केंद्र होता है। यहां रावण की पूजा अर्चना की जाती है। दशहरे के दिन पंजाब और देश के अन्य स्थानों से आकर दुबे परिवार के लोग 10 से 12 दिन तक प्राचीन राम मंदिर में रुकते हैं और रावण के बुत की पूजा-अर्चना करते हैं। यह बुत उनके पड़दादा हकीम वीरबल दास ने बनवाया था और तब से लेकर अब तक उनकी छठी पीढ़ी भी रावण के बुत की पूजा करती आ रही है।
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