पूर्व मुख्यमंत्री को जाति मे गड़बड़ी के मामले में , हाईकोर्ट ने नहीं दी कोई राहत
October 2, 2019
बिलासपुर, पूर्व मुख्यमंत्री को जाति मे गड़बड़ी करने के मामले में , हाईकोर्ट ने कोई राहत नहीं दी है।
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को जाति के मामले में हुई प्राथमिकी पर कोई राहत नहीं दी है।
राज्य के महाधिवक्ता सतीश चन्द्र वर्मा ने बताया कि उच्चस्तरीय छानबीन समिति ने पूर्व मुख्यमंत्री और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के प्रमुख अजीत जोगी को आदिवासी न मानते हुए उनके जाति प्रमाण पत्र को इस वर्ष 23 अगस्त को रद्द कर दिया था।
बाद में बिलासपुर के सिविल लाइन थाने में कलेक्टर के निर्देश पर तहसीलदार टीआर भारद्वाज ने जोगी के खिलाफ छत्तीसगढ़ अनुसूचित जाति जनजाति पिछड़ा वर्ग (सामाजिक प्रास्थिति के प्रमाणीकरण विनियमन) अधिनियम 2013 की धारा 10-1 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई थी।
जोगी ने इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हुए प्राथमिकी को निरस्त करने की मांग की थी। याचिका में जोगी की तरफ से कहा गया कि कथित अपराध जिसमें जाति प्रमाण पत्र बनवाया गया था, वर्ष 1967 में हुआ और जिस अधिनियम के तहत यह अपराध दर्ज किया गया है, वह वर्ष 2013 से प्रभावी है। इसलिए यह मामला इस अधिनियम के तहत लागू नहीं किया जा सकता है।
इस मामले में छत्तीसगढ़ शासन की ओर से महाधिवक्ता ने न्यायालय में तर्क दिया कि मामला 1967 से लगातार चलता चला आ रहा है और इस प्रमाण पत्र के आधार पर वर्ष 2013 के बाद भी इसका लाभ लिया गया है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद उच्च न्यायालय ने विगत दिनों मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति आरसीएस सामंत की एकल पीठ ने मंगलवार को मामले में फैसला सुनाते हुए जोगी द्वारा अंतरिम राहत की मांग को लेकर दिए गए आवेदन को खारिज कर दिया।
बिलासपुर, पूर्व मुख्यमंत्री को जाति मे गड़बड़ी करने के मामले में , हाईकोर्ट ने कोई राहत नहीं दी है।
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को जाति के मामले में हुई प्राथमिकी पर कोई राहत नहीं दी है।
राज्य के महाधिवक्ता सतीश चन्द्र वर्मा ने बताया कि उच्चस्तरीय छानबीन समिति ने पूर्व मुख्यमंत्री और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के प्रमुख अजीत जोगी को आदिवासी न मानते हुए उनके जाति प्रमाण पत्र को इस वर्ष 23 अगस्त को रद्द कर दिया था।
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बाद में बिलासपुर के सिविल लाइन थाने में कलेक्टर के निर्देश पर तहसीलदार टीआर भारद्वाज ने जोगी के खिलाफ छत्तीसगढ़ अनुसूचित जाति जनजाति पिछड़ा वर्ग (सामाजिक प्रास्थिति के प्रमाणीकरण विनियमन) अधिनियम 2013 की धारा 10-1 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई थी।
जोगी ने इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हुए प्राथमिकी को निरस्त करने की मांग की थी। याचिका में जोगी की तरफ से कहा गया कि कथित अपराध जिसमें जाति प्रमाण पत्र बनवाया गया था, वर्ष 1967 में हुआ और जिस अधिनियम के तहत यह अपराध दर्ज किया गया है, वह वर्ष 2013 से प्रभावी है। इसलिए यह मामला इस अधिनियम के तहत लागू नहीं किया जा सकता है।
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इस मामले में छत्तीसगढ़ शासन की ओर से महाधिवक्ता ने न्यायालय में तर्क दिया कि मामला 1967 से लगातार चलता चला आ रहा है और इस प्रमाण पत्र के आधार पर वर्ष 2013 के बाद भी इसका लाभ लिया गया है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद उच्च न्यायालय ने विगत दिनों मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति आरसीएस सामंत की एकल पीठ ने मंगलवार को मामले में फैसला सुनाते हुए जोगी द्वारा अंतरिम राहत की मांग को लेकर दिए गए आवेदन को खारिज कर दिया।
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