प्रयागराज, अगर आप भी प्रयागराज में कुंभ मेले का हिस्सा बनने जा रहे हैं तो यहां के इन प्राचीन मंदिर और ऐकिहासिक स्मारक जरूर जाएं. प्रयागराज में वैसे तो घूमने की बहुत सारी जगहें हैं, यहां पर कुछ चुनिंदा जगहों के बारे में हम आपको बता रहे हैं.
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स्वराज भवन नेहरू परिवार की संपत्ति थी. अब स्वराज भवन प्रयागराज के पर्यटक स्थलों में शुमार हो गया है. लोग यहां पर गांधी जी का चरखा, स्वतंत्रता सेनानियों की तस्वीरें और नेहरू परिवार की निजी धरोहरों को देखने आते हैं.
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नेहरू परिवार का आवास रहा आनंद भवन अब एक म्यूजियम में तब्दील हो चुका है. 1970 में इंदिरा गांधी ने आनंद भवन को भारत सरकार को दान कर दिया था. प्रयागराज जाने वाले पर्यटक आनंद भवन जरूर जाते हैं.
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यह प्रयागराज का सबसे बड़ा पार्क है. इसे पहले अल्फ्रेड पार्क के नाम से जाना जाता था. यह पार्क 133 एकड़ में फैला हुआ है. इसी पार्क में क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद शहीद हो गए थे. पार्क के अंदर ही एक संग्रहालय भी है.
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खुसरोबाग एक विशाल ऐतिहासिक बाग है. चारदीवारी के भीतर इस खूबसूरत बाग में बलुई पत्थरों से बने मकबरे मुगल वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरण हैं. एक दीवार वाले इस उद्यान में 17वीं शताब्दी में निर्मित चार महत्वपूर्ण मुगल कब्रें हैं.कब्रों में से एक जहांगीर के सबसे बड़े पुत्र राजकुमार खुसरो की है, दूसरी कब्र खुसरो की मां शाह बेगम की है. तीसरे मकबरे का निर्माण खुसरो की बहन नेसा बेगम ने करवाया, कई कलात्मक नक्काशी को देखने के लिए यह सुंदर है. सबसे अन्तिम मकबरा छोटा है जिसे तैमूरलंग की कब्र के रूप में जाना जाता है और यह रहस्यमय है.
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दारागंज मोहल्ले में गंगा जी के किनारे संकटमोचन हनुमान मंदिर है. यह कहा जाता है कि संत समर्थ गुरू रामदास जी ने यहां भगवान हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की थी. शिव-पार्वती, गणेश, भैरव, दुर्गा, काली एवं नवग्रह की मूर्तियां भी मंदिर परिसर में स्थापित हैं. इस मंदिर के पास श्री राम जानकी मंदिर एवं हरित माधव मंदिर भी हैं.
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मुनि भारद्वाज के समय यह एक प्रसिद्ध शिक्षा केन्द्र था. कहा जाता है कि भगवान राम अपने वनवास पर चित्रकूट जाते समय सीता जी एवं लक्ष्मण जी के साथ इस स्थान पर आये थे. वर्तमान में वहां भारद्वाजेश्वर महादेव मुनि भारद्वाज, तीर्थराज प्रयाग और देवी काली इत्यादि के मंदिर हैं. निकट ही सुन्दर भारद्वाज पार्क एवं आनन्द भवन है.
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मान्यता है कि ब्रह्मा जी प्रयागराज की धरती पर जब यज्ञ कर रहे थे, तब उन्होंने प्रयागराज की सुरक्षा हेतु भगवान विष्णु से प्रार्थना कर उनके बारह स्वरूपों की स्थापना करवाई थी. प्रयागराज के बारह माधव मंदिरों में प्रसिद्ध श्री वेणी माधव जी का मंदिर दारागंज के निराला मार्ग पर स्थित है. मन्दिर में शालिग्राम शिला निर्मित श्याम रंग की माधव प्रतिमा गर्भगृह में स्थापित है. श्री वेणी माधव को ही प्रयागराज का प्रधान देवता भी माना जाता है. श्री वेणी माधव के दर्शन के बिना प्रयागराज की यात्रा एवं यहां होने वाली पंचकोसी परिक्रमा को पूरा नहीं कहा जा सकता. चैतन्य महाप्रभु जी स्वयं अपने प्रयागराज प्रवास के समय यहां रह कर भजन-कीर्तन किया करते थे.
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यह मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में बना हुआ है. मंदिर चार स्तम्भों पर निर्मित है. जिसमें कुमारिल भट्ट, जगतगुरु आदि शंकराचार्य, कामाक्षी देवी (चारों ओर 51 शक्ति की मूर्तियां के साथ), तिरूपति बाला जी (चारों ओर 108 विष्णु भगवान) और योगशास्त्र सहस्त्रयोग लिंग (108 शिवलिंग) स्थापित है.
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किला के पश्चिम यमुना तट पर मिन्टो पार्क के निकट यह मंदिर स्थित है. यहां काले पत्थर की भगवान शिव का एक लिंग और गणेश एवं नंदी की मूर्तियां हैं. यहां हनुमान जी की भी एक बड़ी मूर्ति है और मंदिर के निकट एक प्राचीन पीपल का पेड़ है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मुराद पूरी होती है.
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चिन्मय मिशन के अधीन प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) में रसूलाबाद घाट के निकट 500 वर्ग फिट के लगभग एक क्षेत्र में श्री अखिलेश्वर महादेव संकुल फैला हुआ है. आधार तल से ऊपर राजस्थान से गुलाबी पत्थर मंगा कर कटाई की जा रही है और श्री अखिलेश्वर महादेव ध्यान मण्डपम को आकार प्रदान करने के लिये लगाये जा रहे हैं.
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शहर की सबसे पुरानी लाइब्रेरी चन्द्रशेखर आजाद पार्क परिसर के भीतर स्थित है. इसमें ऐतिहासिक पुस्तकों, पाण्डुलिपियों एवं पत्रिकाओं का संग्रह है. इसी भवन में राज्य की पहली विधान सभा की पहली बैठक हुई थी. लार्ड थार्नहिल एवं माइन की स्मृति में निर्मित यह भवन गोथिक आर्कीटेक्चर का एक सुंदर नमूना है.
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय को ‘पूर्व का ऑक्सफोर्ड’ कहा जाता है. यह कलकत्ता, बाम्बे और मद्रास विश्वविद्यालय के बाद चौथा पुराना विश्वविद्यालय है. विजय नगरम हाल, सीनेट हाल (दरबार हाल), एस.एस.एल हॉस्टल, इलाहाबाद विश्वविद्यालय की बड़ी इमारतें हैं.
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रानी विक्टोरिया को समर्पित इटालियन चूना पत्थर से निर्मित यह स्मारक स्थापत्य कला का एक जीवंत उदाहरण है. इसे 24 मार्च, 1906 को जेम्स डिगेस ला टच के द्वारा 1906 में खोला गया था. त्रिकोणात्मक रचना में कभी रानी विक्टोरिया की बड़ी मूर्ति लगी हुई थी जो वर्तमान में यहां नहीं है.
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