नयी दिल्ली, हाईकोर्ट ने किसी भी आरोपी को स्वत: जमानत मिल सकने के हक पर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि जिस अपराध की सजा के प्रावधान में न्यूनतम अवधि का जिक्र नहीं किया गया है, वैसे मामलों में 60 दिन के भीतर आरोप पत्र दायर नहीं किये जाने पर आरोपी स्वत: जमानत (डिफॉल्ट बेल) का हकदार होगा।
न्यायमूर्ति योगेश खन्ना की एकल पीठ ने चीनी खुफिया अधिकारियों को संवेदनशील जानकारियां उपलब्ध कराने के आरोप में गिरफ्तार वरिष्ठ पत्रकार राजीव शर्मा की जमानत याचिका मंजूर करते हुए शुक्रवार को यह व्यवस्था दी।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आदीश चंद्र अग्रवाल की दलीलें सुनी।
श्री अग्रवाल ने याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहाई के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167 की विभिन्न उपधाराओं का विस्तृत विश्लेषण किया और न्यायमूर्ति खन्ना ने उनकी दलीलों पर सहमति जताते हुए निचली अदालत के निर्णय को पलट दिया।
न्यायमूर्ति खन्ना ने अपने आदेश में कहा, “जिस आधिकारिक गोपनीयता कानून के तहत याचिकाकर्ता को अभियुक्त बनाया गया है, उसके तहत हालांकि सजा को 14 साल तक बढ़ाये जाने का प्रावधान है, लेकिन संबंधित धारा सजा की न्यूनतम अवधि के बारे में कुछ नहीं कहती और ‘राजीव चौधरी’ और ‘राकेश कुमार पॉल’ मामलों में दिये गये फैसलों के अनुसार यह ‘10 साल या उससे अधिक’ की स्पष्ट अवधि की कसौटी पर खरी नहीं होती।”
उन्होंने आगे कहा, “ऐसे में चालान की अवधि 60 दिन की होगी, इसलिए मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा दिये गये आदेश को निरस्त किया जाता है तथा जमानत याचिका मंजूर की जाती है।” एकल पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता डिफॉल्ट जमानत का हकदार है, क्योंकि चालान 60 दिनों के भीतर नहीं दाखिल किया गया।
अभियोजन पक्ष का आरोप है कि 61 वर्षीय स्वतंत्र पत्रकार 2016 से चीन के लिए जासूसी कर रहे थे। वह एक प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) कार्डधारक हैं और उन्होंने अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से भारत और चीन के बारे में कई वीडियो भी पोस्ट किए हैं। उनके खिलाफ यह भी आरोप है कि 2016 से अब तक संवेदनशील जानकारी साझा करने के लिए चीन ने शेल कंपनियों के माध्यम से उन्हें 45 से 50 लाख रुपये दिये हैं।