सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना मामले में, मनोज तिवारी को कुछ इस तरह बख्शा
November 23, 2018
नयी दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना मामले में दिल्ली भाजपा प्रमुख मनोज तिवारी को बख्श दिया है। राहत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने अवमानना के मामले में उन्हें दंडित करने से तो बख्श दिया लेकिन‘‘गलत जगह साहस का प्रदर्शन’’ करने के लिये उन्हें फटकार लगाई।
न्यायालय ने तिवारी के कदम पर ‘काफी दुख’ जताते हुए कहा कि सीलिंग पर अदालत द्वारा गठित निगरानी समिति के खिलाफ ओछे आरोप लगाकर उनका ‘गलत जगह साहस का प्रदर्शन करना’ और ‘छाती पीटना’ साफ संकेत देता है कि वह ‘वह कितने नीचे जा सकते’ हैं और उन्होंने ‘विधि के शासन के प्रति सम्मान के पूर्ण अभाव’ को प्रदर्शित किया।
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इस बात पर तनिक भी संदेह नहीं है कि भाजपा सांसद तिवारी ने 16 सितंबर को पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) के पशु चिकित्सा सेवा विभाग द्वारा एक इमारत पर लगायी गयी सील को तोड़ा या उसके साथ छेड़छाड़ की।
पीठ ने कहा कि न्यायालय उनके व्यवहार से दुखी है क्योंकि वह एक निर्वाचित प्रतिनिधि हैं और ‘‘भरोसा है कि वह दिल्ली के जिम्मेदार नागरिक हैं।’’ पीठ ने कहा, ‘‘मनोज तिवारी का तीन अक्टूबर 2018 को सुनवाई के तुरंत बाद गलत जगह साहस का प्रदर्शन करना और अदालत द्वारा गठित निगरानी समिति के खिलाफ गंभीर लेकिन ओछे आरोप लगाना इस बात के स्पष्ट संकेत देता है कि मनोज तिवारी कितना नीचे जा सकते हैं और यह विधि के शासन के प्रति उनके पूर्ण तिरस्कार को दर्शाता है।’’
पीठ में न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता भी शामिल थे।पीठ ने कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि वह अकारण बागी बने।’’शीर्ष अदालत ने कहा कि तिवारी के वकील का यह जवाब और भी आश्चर्यजनक था कि सांसद ने ’भीड़ के दबाव’ में यह कदम उठाया। पीठ ने कहा, ‘‘हमसे कहा गया कि मनोज तिवारी एक राजनीतिक दल के लोकप्रिय नेता हैं और इलाके में उन्हें देखकर तकरीबन 1500 लोग जमा हो गए और उन्हें प्रेम सिंह के परिसर पर अवैध तरीके से लगाए गए सील को तोड़ने के लिये उकसाया।’’
आदेश में कहा गया है, ‘‘उग्र भीड़ द्वारा उन पर डाले गए दबाव के परिणामस्वरूप उन्होंने सील को तोड़ दिया या उसके साथ छेड़छाड़ की। मनोज तिवारी द्वारा इसके पीछे दिये गए तर्क ने हमें हतप्रभ किया कि भीड़ को शांत करने और कानून के अनुसार काम करने के लिये समझाने की जगह उन्होंने कानून को अपने हाथ में लेकर गैर जिम्मेदाराना तरीके से काम किया।’’
न्यायालय ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में इस तरह के बर्ताव के ‘खतरनाक’ नतीजे हो सकते हैं और मिसाल दी कि अगर भीड़ निर्वाचित सांसद को अधिक गंभीर अपराध करने के लिये उकसाती है तो ‘‘क्या इसका मतलब है कि निर्वाचित प्रतिनिधि भीड़ के निर्देश पर काम करेंगे और अपराध करेंगे।’’पीठ ने कहा, ‘‘दैनिक आधार पर बड़ी संख्या में इस तरह की स्थिति पैदा हो सकती है और यह गौर करना परेशान करने वाला है कि किसी जिम्मेदार राजनीतिक दल का निर्वाचित सदस्य भीड़ को विधि के शासन का पालन करने के लिये समझाने की जगह भीड़ के दबाव में झुक सकता है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में निर्वाचित प्रतिनिधि नेता नहीं रह जाता है और अंध अनुयायी बन जाता है। हमें इस विषय पर और कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि मनोज तिवारी के खिलाफ कार्रवाई करने का फैसला राजनीतिक दल पर छोड़ दिया जाना चाहिये।’’न्यायालय ने यह भी गौर किया कि परिसरों की सीलिंग और डी सीलिंग का निगरानी समिति से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि उससे इस मामले पर विचार-विमर्श नहीं किया गया था और परिसरों को सील करने के लिये समिति ने कोई निर्देश नहीं दिया था।
पीठ ने कहा, ‘‘जिस बेशर्मी से मनोज तिवारी ने कानून को अपने हाथ में लिया और प्रेम सिंह के परिसर से सील को तोड़ा या उससे छेड़छाड़ की उससे हम काफी दुखी हैं। हम इसलिये दुखी हैं क्योंकि मनोज तिवारी निर्वाचित सांसद हैं और उम्मीद है कि वह दिल्ली के जिम्मेदार नागरिक हैं। क्या किसी जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि को इस तरीके से विधि के शासन का उल्लंघन करना चाहिये।’’
पीठ ने कहा, ‘‘अदालत और निगरानी समिति का कंधा इतना व्यापक है कि वह आलोचना को सहजता से ले और इसलिये उसकी तिवारी के खिलाफ उनके लापरवाही भरे बयान के लिये कार्रवाई के लिये आगे बढ़ने की मंशा नहीं है।’’न्यायालय ने कहा, ‘‘हमारी राय है कि हमारी अदालतें गलत राजनीतिक प्रचार को आगे बढ़ाने की जगह नहीं है, इस तरह के गलत आचरण की जोरदार निंदा किये जाने की आवश्यकता है। हम सिर्फ उम्मीद कर सकते हैं कि सद्बुद्धि आएगी और संबंधित राजनीतिक दल अलोकतांत्रिक प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाएगा।’’
शीर्ष अदालत ने 19 सितंबर को पूर्वोत्तर दिल्ली से सांसद तिवारी के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया था। तिवारी के खिलाफ ईडीएमसी ने पूर्वोत्तर दिल्ली के गोकलपुरी इलाके में कथित तौर पर एक परिसर की सील तोड़ने के लिये प्राथमिकी दर्ज कराई थी।
फैसले के तुरंत बाद भाजपा और आप के बीच वाक्युद्ध शुरू हो गया। तिवारी ने दावा किया कि न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में चल रहे सीलिंग अभियान में ‘चयनात्मक’ नीति अपनाए जाने के प्रति उनकी चिंताओं पर गौर किया। वहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि भाजपा को अपना ‘तमाशा और नौटंकी’ बंद करनी चाहिये। केजरीवाल ने यथास्थिति बरकरार रखने के लिये तत्काल अध्यादेश लाकर लाखों लोगों को राहत प्रदान करने को कहा।