शिमला, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने कहा है कि सन 1947 से लेकर 1950 के बीच के तीन वर्षो में हुई दो बड़ी गलतियों की कीमत भारत को चुकानी पड़ रही है । उन्होंने आज यहां कहा कि न जाने इन गलतियों की कीमत भारत को कितने वर्षो तक चुकानी पड़ेगी और कितने जवानों का बलिदान लेगी।
उन्होंने बताया कि पहली गलती भारत ने तब की जब कश्मीर के मामले को राष्ट्र संघ में ले गए। युद्ध विराम करना पड़ा और वह क्षेत्र आज तक पाकिस्तान के अधिकार में है। पाक आतंकवाद लगातार जवानों का बलिदान ले रहा है। हमीरपुर के जवान अंकुश ठाकुर के पार्थिव शरीर को देख कर आंखे बरसने लगती हैं। सब शहीदों को मेरी श्रद्धांजलि ।
श्री कुमार ने कहा कि 1950 में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर हजारों की हत्या की। अंतराष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने उसे जेनोसाइड का नाम दिया। दलाई लामा भाग कर भारत आये। अमरीका और ब्रिटेन जैसे बहुत से देश चाहते थे कि भारत तिब्बत का मसला राष्ट्र संघ में उठाये। वे सब सहायता करना चाहते थे। दलाई लामा का विश्व भर में बड़ा सम्मान है लेकिन भारत ने तिब्बत के स्वतन्त्र देश के अस्तित्व को ही नहीं माना।
उन्होंने कहा कि दूसरी बड़ी गलती तिब्बत का मुद्दा यूएनओ में नहीं उठाया। तिब्बत को चीन का हिस्सा स्वीकार कर दूसरी बड़ी गलती की। विश्व के एक छोटे से देश एलसेवडार ने राष्ट्रसंघ में तिब्बत का प्रश्न उठाया पर समर्थन नहीं मिला। जिस कश्मीर को राष्ट्रसंघ में नहीं ले जाना चाहिये था उसे ले गये जिस तिब्बत को ले जाना चाहिये था उसे नहीं ले गए।
उन्होने कहा कि अंग्रेज भारत से अधिक समझदार थे। उन्होने 1914 में चीन, तिब्बत और भारत के प्रतिनिधियों को शिमला बुला कर भारत तिब्बत सीमा को मेकमोहन रेखा के नाम से निश्चित करने के लिए एतिहासिक शिमला समझौता करवाया। इतना ही नहीं 1904 में यंग मिशन के नाम से भारत की सेना तिब्बत मे गई। आराम से ल्हासा तक पहुंच गई। महामहिम दलाई लामा भाग गए। तिब्बत पर पूर्ण अधिकार करने का विचार किया लेकिन लंदन से ब्रिटेन सरकार ने कहा तिब्बत पर अधिकार नहीं करना है। तिब्बत को भारत और चीन के बीच में एक स्वतन्त्र देश बनाये रखना आवश्यक है। यंग मिशन अपना प्रतिनिधि ल्हासा में रखकर लौट आया था। आजाद भारत की सरकार ने तिब्बत को चीन देश का हिस्सा स्वीकार कर लिया।
उनके अनुसार इतिहास की इन दो गलतियों का भारत को बहुत मूल्य चुकाना पड़ा है। हजारों बलिदान देने पड़े है। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के हिन्दी चीनी भाई-भाई के बाद 1962 का आक्रमण मिला। अटल जी द्वारा बस में लाहौर यात्रा के बाद कारगिल युद्ध मिला और अब मोदी जी की चीन राष्ट्रपति से चार मुलाकातों के बाद बीस जवानों के शव मिले।