अयोध्या, श्रीराम की नगरी अयोध्या के मंदिरों में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ झूला महोत्सव कार्यक्रम जारी है हालांकि कोरोना संक्रमण के मद्देनजर झूला मेले पर लगे प्रतिबंध से आमतौर पर सन्नाटा पसरा हुआ है।
कोरोना संक्रमण को देखते हुए इस बार झूला मेले पर जिला प्रशासन ने पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया है जिसके तहत बाहरी श्रद्धालुओं के प्रवेश पर पूरी तरह से रोक है। सिर्फ मंदिरों से ही जुड़े हुए साधु-संत झूलनोत्सव में शामिल हो रहे हैं, जो सायंकाल भगवान के विग्रहों को झूले पर पधार कर झूला झुलाते हैं और अनेकानेक झूला गीत गाकर भाव के अंतरग में आनंदित होते हैं। यह सिलसिला देर रात तक चलता है। 12 दिनों तक चलने वाला यह उत्सव रक्षाबंधन के दिन समाप्त हो जायेगा।
कनक भवन परिसर स्थित मंदिर श्रीलाल साहब दरबार का जहां महंत जानकी शरण महाराज की सानिध्यता में और अधिकारी रामनरेश शरण के कुशल संयोजन में झूलन महोत्सव मनाया जा रहा है। शाम होते ही मंदिर में झूलन की मनोरम झांकी सजती है। करुणानिधान भवन रामकोट में महंत रामजी दास महाराज के मार्गदर्शन में झूलनोत्सव का कार्यक्रम मंदिर में चल रहा है। मंदिर के साधु संत झूलन गीत गाकर देव विग्रहों को झूला झुला रहे हैं।
जिला प्रशासन की रोक के चलते सामूहिक रूप से मंदिरों में प्रवेश लोग नहीं कर रहे हैं हालांकि स्थानीय लोग पांच-पांच की संख्या में मंदिर जाकर सोशल डिस्टेंसिंग को देख करके झूला उत्सव को देख रहे हैं। करुणानिधान भवन के व्यवस्थापक रामनारायण दास महाराज ने कहा कि हरियाली तीज के दिन सर्वप्रथम मणिपर्वत पर झूला पड़ता है इसके बाद ही रामनगरी के मंदिरों में झूलनोत्सव का कार्यक्रम शुरू होता है लेकिन इस बार कोविड-19 बीमारी को लेकर झूला मेले पर रोक है।
गौरतलब है कि सावन झूला मेला तकरीबन एक पखवाड़े तक चलता है। सावन मेले में आने वाले श्रद्धालु रिमझिम फुहारों में भी भव्य रस का रसास्वादन करते हैं और रात-रात भर मंदिरों में घूम-घूमकर विग्रहों को झुलाते हैं। इस समय छटा देखते ही बनती है। सावन में गाये जाने वाली कजरी गीतों की भी चारों ओर गूंज सुनाई देती है।
मणिपर्वत के मेले के दिन सीताराम झांकी को लेकर रामधुन गाते हुए श्रद्धालु मणिपर्वत पहुंचते हैं जहां वृक्षों में झूले डालकर भगवान के विग्रहों को झुलाया जाता है। पूरे सावन में मंदिरों में दोनों समय भगवान के विग्रहों को झुलाने की परम्परा है। मणिपर्वत पर पडऩे वाले झूलों में विग्रहों के अलावा छोटे-छोटे बच्चों को राम-सीता के रूप में सजाकर झुलाया जाता है।
सखी सम्प्रदाय के लोग मनमोहक पोशाक पहनकर सोलह श्रृंगार करते हैं। इसी प्रकार तेरह दिन तक चलने के बाद पूर्णिमा स्थान अर्थात् तीन अगस्त रक्षाबंधन के दिन समाप्त हो जाता है। इस मेले में दूरदराज से श्रद्धालु आते हैं और मेला का आनंद उठाते हैं।