सीबीआई नही ढूंढ पायी जेएनयू के छात्र नजीब को, हाईकोर्ट ने ‘क्लोजर रिपोर्ट ’ की इजाजत दी
October 9, 2018
नई दिल्ली, जेएनयू के छात्र नजीब अहमद के विश्वविद्यालय परिसर से रहस्यमय परिस्थितियों में लापता होने के करीब दो साल बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले में सीबीआई को ‘क्लोजर रिपोर्ट ’ दाखिल करने की सोमवार को इजाजत दे दी। इस तरह, मामले की जांच अब बंद होने वाली है।
उच्च न्यायालय नजीब की मां फातिमा नफीस के इस आरोप से सहमत नहीं हुआ कि सीबीआई राजनीतिक मजबूरियों के चलते क्लोजर रिपोर्ट रिपोर्ट दाखिल करना चाहती है। न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति विनोद गोयल ने फातिमा के इस आरोप को खारिज कर दिया कि सीबीआई की जांच ‘‘सुस्त और धीमी’’ थी।
पीठ ने कहा कि अदालत इस बात से सहमत नहीं है कि सीबीआई जांच में सुस्त रही और धीमी जांच की अथवा इस मामले में उसने जरूरी कदम नहीं उठाए। अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में इस अदालत ने जांच की निगरानी की, इसलिए वह याचिकाकर्ता की इस दलील से सहमत नहीं है कि सीबीआई ने निष्पक्षता से काम नहीं किया, या यह क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने के लिए किसी दबाव में है, या इस बारे में इसके इस फैसले की राजनीतिक मजबूरियां हैं।
सीबीआई ने पुलिस की एक साल से अधिक की जांच के बाद पिछले साल 16 मई को जांच कार्य अपने हाथों में लिया था। सीबीआई ने कहा कि इसने मामले के हर पहलू की जांच की। उसका मानना है कि लापता छात्र के खिलाफ कोई अपराध नहीं किया गया है।
साल 14 अक्टूबर की रात अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से कथित रूप से जुड़े कुछ छात्रों के साथ कहासुनी के बाद नजीब अहमद 15 अक्टूबर, 2016 को जवाहर लाल विश्वविद्यालय के माही-मांडवी छात्रावास से लापता हो गया था। नजीब के लापता होने के सात महीने बीतने के बाद भी उसके अता – पता के बारे में दिल्ली पुलिस को कोई सुराग हाथ नहीं लगा, जिसके बाद पिछले साल 16 मई को जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी।
फातिमा के वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने सुनवाई के दौरान दलील दी कि ‘मिनेसोटा प्रोटाकॉल’ के तहत वे इस मामले में सीबीआई द्वारा दाखिल स्थिति रिपोर्ट का अवलोकन करने के हकदार हैं। वकील ने अदालत के सामने दलील दी कि यह एक ‘राजनीतिक’ मामला है और ‘सीबीआई अपने आकाओं के दबाव में झुक गई है।
पीठ ने छात्र की मां द्वारा दायर ‘बंदी प्रत्यक्षीकरण’ याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि मौजूदा मामले में सुनवाई के हर स्तर पर फातिमा स्थिति रिपोर्ट दाखिल किए जाने से अवगत थी – शुरू में दिल्ली पुलिस द्वारा और बाद में सीबीआई द्वारा । अदालत ने यह भी कहा कि ‘केस डायरी’ का अवलोकन सिर्फ अदालत करेगी। इसका ब्योरा शिकायतकर्ता के साथ साझा करने की जरूरत नहीं है।
पीठ ने कहा कि सीबीआई के क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर देने के बाद शिकायतकर्ता इसका विरोध करते हुए एक याचिका दायर कर सकती हैं। उन्हें क्लोजर रिपोर्ट का ब्योरा दिया जाएगा। पीठ ने अपने 34 पृष्ठों के फैसले में फातिमा का यह अनुरोध भी खारिज कर दिया कि विशेष जांच टीम (एसआईटी) को जांच की जिम्मेदारी सौंपी जाए, जिसकी निगरानी उच्च न्यायालय करे और इस तरह सीबीआई को पूरे मामले से बाहर कर दिया जाए।
नई दिल्ली, जेएनयू के छात्र नजीब अहमद के विश्वविद्यालय परिसर से रहस्यमय परिस्थितियों में लापता होने के करीब दो साल बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले में सीबीआई को ‘क्लोजर रिपोर्ट ’ दाखिल करने की सोमवार को इजाजत दे दी। इस तरह, मामले की जांच अब बंद होने वाली है।
उच्च न्यायालय नजीब की मां फातिमा नफीस के इस आरोप से सहमत नहीं हुआ कि सीबीआई राजनीतिक मजबूरियों के चलते क्लोजर रिपोर्ट रिपोर्ट दाखिल करना चाहती है। न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति विनोद गोयल ने फातिमा के इस आरोप को खारिज कर दिया कि सीबीआई की जांच ‘‘सुस्त और धीमी’’ थी।
पीठ ने कहा कि अदालत इस बात से सहमत नहीं है कि सीबीआई जांच में सुस्त रही और धीमी जांच की अथवा इस मामले में उसने जरूरी कदम नहीं उठाए। अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में इस अदालत ने जांच की निगरानी की, इसलिए वह याचिकाकर्ता की इस दलील से सहमत नहीं है कि सीबीआई ने निष्पक्षता से काम नहीं किया, या यह क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने के लिए किसी दबाव में है, या इस बारे में इसके इस फैसले की राजनीतिक मजबूरियां हैं।
सीबीआई ने पुलिस की एक साल से अधिक की जांच के बाद पिछले साल 16 मई को जांच कार्य अपने हाथों में लिया था। सीबीआई ने कहा कि इसने मामले के हर पहलू की जांच की। उसका मानना है कि लापता छात्र के खिलाफ कोई अपराध नहीं किया गया है।
साल 14 अक्टूबर की रात अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से कथित रूप से जुड़े कुछ छात्रों के साथ कहासुनी के बाद नजीब अहमद 15 अक्टूबर, 2016 को जवाहर लाल विश्वविद्यालय के माही-मांडवी छात्रावास से लापता हो गया था। नजीब के लापता होने के सात महीने बीतने के बाद भी उसके अता – पता के बारे में दिल्ली पुलिस को कोई सुराग हाथ नहीं लगा, जिसके बाद पिछले साल 16 मई को जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी।
फातिमा के वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने सुनवाई के दौरान दलील दी कि ‘मिनेसोटा प्रोटाकॉल’ के तहत वे इस मामले में सीबीआई द्वारा दाखिल स्थिति रिपोर्ट का अवलोकन करने के हकदार हैं। वकील ने अदालत के सामने दलील दी कि यह एक ‘राजनीतिक’ मामला है और ‘सीबीआई अपने आकाओं के दबाव में झुक गई है।
पीठ ने छात्र की मां द्वारा दायर ‘बंदी प्रत्यक्षीकरण’ याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि मौजूदा मामले में सुनवाई के हर स्तर पर फातिमा स्थिति रिपोर्ट दाखिल किए जाने से अवगत थी – शुरू में दिल्ली पुलिस द्वारा और बाद में सीबीआई द्वारा । अदालत ने यह भी कहा कि ‘केस डायरी’ का अवलोकन सिर्फ अदालत करेगी। इसका ब्योरा शिकायतकर्ता के साथ साझा करने की जरूरत नहीं है।
पीठ ने कहा कि सीबीआई के क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर देने के बाद शिकायतकर्ता इसका विरोध करते हुए एक याचिका दायर कर सकती हैं। उन्हें क्लोजर रिपोर्ट का ब्योरा दिया जाएगा। पीठ ने अपने 34 पृष्ठों के फैसले में फातिमा का यह अनुरोध भी खारिज कर दिया कि विशेष जांच टीम (एसआईटी) को जांच की जिम्मेदारी सौंपी जाए, जिसकी निगरानी उच्च न्यायालय करे और इस तरह सीबीआई को पूरे मामले से बाहर कर दिया जाए।