नयी दिल्ली, रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है ?
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि आरोपी को अपने मनमाफिक जांच एजेंसी चुनने का अधिकार नहीं होता। शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की आजादी के तहत पत्रकारों का अधिकार ऊपरी स्तर पर है, लेकिन वह पूर्ण नहीं है।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पालघर भीड़ हिंसा मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ कथित टिप्पणी को लेकर दर्ज प्राथमिकी की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने का रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी का अनुरोध ठुकराते हुए कहा कि आरोपी को अपने मनमाफिक जांच एजेंसी के चयन का अधिकार नहीं है।
शीर्ष अदालत ने उनके खिलाफ मामले की जांच मुंबई पुलिस के जिम्मे छोड़ते हुए कहा कि आरोपी यह नहीं कह सकता कि उसके खिलाफ कौन सी एजेंसी जांच करेगी, कौन सी नहीं।
खंडपीठ की ओर से न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा, “सीबीआई को जांच का जिम्मा सौंपना नियमित रूप से नहीं किया जा सकता। इस न्यायालय के पूर्व के निर्णय इस बात पर जोर देते हैं कि सीबीआई जांच का आदेश देना एक असाधारण अधिकार है, जिसका इस्तेमाल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जाता है।”
न्यायालय ने यह भी कहा कि स्वतंत्र प्रेस के बिना नागरिकों की आजादी कायम नहीं रह सकती। संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत पत्रकारों के अधिकार उच्चतर स्तर पर हैं, लेकिन वह पूर्ण नहीं हैं।