किंग के हाथ से निकल गई राजगद्दी, गठबंधन विधायकों को एकजुट रखने की ‘केमिस्ट्री’ में हुये फेल
July 23, 2019
बेंगलूरू, वर्ष 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान एच डी कुमारस्वामी ने कहा था, ‘‘मैं किंग बनूंगा, किंगमेकर नहीं। उनकी यह बात सच साबित हो गई और उनकी पार्टी जनता दल (एस) के चुनाव में तीसरे नंबर पर रहने के बावजूद वह 23 मई 2018 को इच्छित पद हासिल करने में कामयाब हो गए।
लेकिन उनकी पिछली पारी की तरह ही मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल अल्पकालिक रहा और 13 महीने पुरानी डांवाडोल गठबंधन सरकार अंतत: गिर गई। विज्ञान स्नातक कुमार स्वामी अपनी सरकार की दीर्घकालिकता सुनिश्चित करने के लिए गठबंधन विधायकों को एकजुट रखने की ‘केमिस्ट्री’ में विफल रहे। कुमारस्वामी मंगलवार को विश्वासमत हासिल करने में विफल रहे।
उनकी गठबंधन सरकार का भविष्य तभी साफ दिखने लगा था जब कांग्रेस के 13 और जनता दल (एस) के तीन विधायकों को मिलाकर कुल 16 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और दो निर्दलीय विधायकों-आर शंकर तथा एच नागेश ने समर्थन वापस ले लिया। कांग्रेस के एक विधायक रामलिंगा रेड्डी बाद में इस्तीफे के अपने फैसले से पीछे हट गए और कहा कि वह सरकार का समर्थन करेंगे, लेकिन सब बेकार रहा।
मुख्यमंत्री के रूप में कुमारस्वामी का दूसरा कार्यकाल कठिनाइयों भरा रहा। गठबंधन में बार-बार उठने वाले असंतोष के चलते सरकार पर लगातार खतरा मंडराता रहा। कांग्रेस-जनता दल (एस) गठबंधन में उत्पन्न हुईं विपरीत परिस्थितियों को लेकर कुमारस्वामी ने यह तक कहा था कि वह शीर्ष पद पर रहकर खुश नहीं हैं और ‘विषकंठ’ (भगवान शिव) की तरह परेशानी को झेल रहे हैं।
जिस भाजपा की वजह से कुमारस्वामी को आज मुख्यमंत्री पद की कुर्सी गंवानी पड़ी, कभी उसी भाजपा की वजह से वह पहली बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे। कुमारस्वामी राजनीतिक माहौल में पले-बढ़े। उन्होंने 1996 में कनकपुरा लोकसभा सीट पर जीत दर्ज कर राजनीति में प्रवेश किया था। बाद में वह लोकसभा और विधानसभा चुनाव दोनों हार गए।
वर्ष 2004 में वह पहली बार विधानसभा में पहुंचे। तब त्रिशंकु विधानसभा होने के बाद कांग्रेस के साथ जनता दल (एस) गठबंधन सरकार में शामिल हो गया था। साल 2006 में कुमारस्वामी ने बगावत कर दी और अपने पिता एवं पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा की इच्छा के विपरीत 42 विधायकों के साथ गठबंधन से बाहर हो गए। उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई और विधायक के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान ही वह मुख्यमंत्री बन गए।
बारी-बारी से मुख्यमंत्री पद की व्यवस्था के तहत वह 20 महीने तक मुख्यमंत्री रहे। लेकिन जब मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा की बारी आई तो कुमारस्वामी पीछे हट गए और बी एस येदियुरप्पा सरकार को सात दिन के भीतर ही गिरा दिया। कुमारस्वामी ने साबित किया कि राजनीति संभव कर दिखाने की कला है।
बेंगलूरू, वर्ष 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान एच डी कुमारस्वामी ने कहा था, ‘‘मैं किंग बनूंगा, किंगमेकर नहीं। उनकी यह बात सच साबित हो गई और उनकी पार्टी जनता दल (एस) के चुनाव में तीसरे नंबर पर रहने के बावजूद वह 23 मई 2018 को इच्छित पद हासिल करने में कामयाब हो गए।
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लेकिन उनकी पिछली पारी की तरह ही मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल अल्पकालिक रहा और 13 महीने पुरानी डांवाडोल गठबंधन सरकार अंतत: गिर गई। विज्ञान स्नातक कुमार स्वामी अपनी सरकार की दीर्घकालिकता सुनिश्चित करने के लिए गठबंधन विधायकों को एकजुट रखने की ‘केमिस्ट्री’ में विफल रहे। कुमारस्वामी मंगलवार को विश्वासमत हासिल करने में विफल रहे।
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उनकी गठबंधन सरकार का भविष्य तभी साफ दिखने लगा था जब कांग्रेस के 13 और जनता दल (एस) के तीन विधायकों को मिलाकर कुल 16 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और दो निर्दलीय विधायकों-आर शंकर तथा एच नागेश ने समर्थन वापस ले लिया। कांग्रेस के एक विधायक रामलिंगा रेड्डी बाद में इस्तीफे के अपने फैसले से पीछे हट गए और कहा कि वह सरकार का समर्थन करेंगे, लेकिन सब बेकार रहा।
यहां पर कूड़ा-कचरा लाओ, और भरपेट खाना खाओ….
मुख्यमंत्री के रूप में कुमारस्वामी का दूसरा कार्यकाल कठिनाइयों भरा रहा। गठबंधन में बार-बार उठने वाले असंतोष के चलते सरकार पर लगातार खतरा मंडराता रहा। कांग्रेस-जनता दल (एस) गठबंधन में उत्पन्न हुईं विपरीत परिस्थितियों को लेकर कुमारस्वामी ने यह तक कहा था कि वह शीर्ष पद पर रहकर खुश नहीं हैं और ‘विषकंठ’ (भगवान शिव) की तरह परेशानी को झेल रहे हैं।
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जिस भाजपा की वजह से कुमारस्वामी को आज मुख्यमंत्री पद की कुर्सी गंवानी पड़ी, कभी उसी भाजपा की वजह से वह पहली बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे। कुमारस्वामी राजनीतिक माहौल में पले-बढ़े। उन्होंने 1996 में कनकपुरा लोकसभा सीट पर जीत दर्ज कर राजनीति में प्रवेश किया था। बाद में वह लोकसभा और विधानसभा चुनाव दोनों हार गए।
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वर्ष 2004 में वह पहली बार विधानसभा में पहुंचे। तब त्रिशंकु विधानसभा होने के बाद कांग्रेस के साथ जनता दल (एस) गठबंधन सरकार में शामिल हो गया था। साल 2006 में कुमारस्वामी ने बगावत कर दी और अपने पिता एवं पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा की इच्छा के विपरीत 42 विधायकों के साथ गठबंधन से बाहर हो गए। उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई और विधायक के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान ही वह मुख्यमंत्री बन गए।
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बारी-बारी से मुख्यमंत्री पद की व्यवस्था के तहत वह 20 महीने तक मुख्यमंत्री रहे। लेकिन जब मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा की बारी आई तो कुमारस्वामी पीछे हट गए और बी एस येदियुरप्पा सरकार को सात दिन के भीतर ही गिरा दिया। कुमारस्वामी ने साबित किया कि राजनीति संभव कर दिखाने की कला है।
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