प्रयागराज, पाश्चात्य जीवनशैली को अपनाने की होड़ और मोबाइल इंटरनेट की दुनिया में गोते लगाती जिंदगी ने पारंपरिक त्योहारों का आकर्षण भले ही प्रभावित किया हो लेकिन पौराणिक काल से ही पति पत्नी के बीच असीम प्रेम के प्रतीक रहे ‘करवा चौथ’ के पर्व का क्रेज दिनो दिन बढ़ता जा रहा है।
सुहागिन स्त्रियों द्वारा पति की दीर्घायु के लिये निर्जला व्रत और फिर चांद देखकर व्रत तोड़ने की परम्परा में अब पति भी बराबर के भागीदार बन रहे है और खुशहाल दाम्पत्य जीवन की कामना के साथ कई पुरूष भी अपनी जीवन संगिनी के साथ व्रत रखते है। उत्तर प्रदेश समेत विशेषकर उत्तरी भारत के विभिन्न राज्यों में बुधवार को करवाचौथ का त्योहार मनाया जायेगा।
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला करवाचौथ पर्व पति के प्रति समर्पण का प्रतीक हुआ करता था लेकिन आज यह पति.पत्नी के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की ऊष्मा से दमक और महक रहा है। आधुनिक दौर भी इस परंपरा को डिगा नहीं सका है बल्कि इसमें अब ज्यादा संवेदनशीलता, समर्पण और प्रेम की अभिव्यक्ति की गहराई दिखाई देती है।
करवाचौथ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। करवा यानी मिट्टी का बरतन और चौथ यानि चतुर्थी। इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। इस व्रत में भगवान शिव शंकर माता पार्वती कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा-अर्चना करने का विधान है। माना जाता है करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है! उनके घर में सुख, शान्ति, समृद्धि और सन्तान सुख मिलता है। सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इस त्योहार का इंतजार करती हैं। करवाचौथ का त्योहार पति.पत्नी के मजबूत रिश्तेए प्यार और विश्वास का प्रतीक है।
सामाजिक कार्यो में विशेष रूचि रखने वाली डा रश्मि सिंह ने “यूनीवार्ता” को बताया कि पिछले कुछ वर्षों से करवाचौथ का त्योहार का भी ग्लोबलाइजेशन हो गया है और अब करवा चौथ देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी मनाया जाने लगा है। विदेशों में ‘‘देसी वाइफ इंग्लिश लाइफ” के बीच भी महिलाएं बखूबी संतुलन बनायी हैं। पश्चिमी परिधानों की आदी हो चुकी ये महिलाएं जब भी धार्मिक और सांस्कृतिक सभ्यता की बात आती है तो उनका देशी लुक पूर्ण रूप से भारतीय हो जाता है।
करवा चौथ पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत अन्य कई प्रदेशों के साथ इंग्लैंड अमेरिका, यूरोप, कैनेडा और सूरीनाम आदि देशों में रहने वाले भारतीय परंपरागत ढंग से मनाते हैं।
उन्होने बताया कि इस पर्व को पहले पत्नियां ही करती थी लेकिन बदलते परिवेश में पति भी अपने सफल दाम्पत्य जीवन के लिए पत्नी के साथ निर्जला व्रत का पालन करने लगे है। मोबाइल फोन और इंटरनेट के दौर में करवा चौथ के प्रति महिलाओं में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आयी बल्कि इसमें और आकर्षण बढ़ा है। टीवी धारावाहिकों और फिल्मों से इसको अधिक बल मिला है। करवा चौथ भावना के अलावा रचनात्मकताए कुछ.कुछ प्रदर्शन और आधुनिकता का भी पर्याय बन चुका है।
डा सिंह ने बताया कि इस पर्व की महत्ता न केवल महिलाओं के लिए बल्कि पुरूषों के लिए भी है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं और छलनी से चंद्रमा को देखती हैं और फिर पति का चेहरा देखकर उनके हाथों से जल ग्रहण कर अपना व्रत पूरा करती हैं। उन्हाेने बताया कि इस व्रत में चन्द्रमा को छलनी में देखने का विधान इस बात की ओर इंगित करता है कि पतिण्पत्नी एक दूसरे के दोष को छानकार सिर्फ गुणों को देखें जिससे दाम्पत्य के रिश्ते प्यार और विश्वास की डोर से मजबूती के साथ बंधे रहे। पति और पत्नि गृहस्थी रूपी रथ के दो पहिया हैं। किसी एक के भी बिखरने से पूरी गृहस्थी टूट जाती है।
डा सिंह ने बताया कि पौराणिकता के साथ-साथ इसमें आधुनिकता का प्रवेश हो चुका है और अब यह त्योहार भावनाओं पर केंद्रित हो गया है। हमारे समाज की यही खासियत है कि हम परंपराओं में नवीनता का समावेश लगातार करते रहते हैं। यह पर्व पति-पत्नी का बन चुका है क्योंकि दोनों गृहस्थी रुपी गाड़ी के दो पहिए है। निष्ठा की धुरी से जुड़े हैं इसलिए संबंधों में प्रगाढ़ता के लिए दोनों ही व्रत करते हैं।
उन्होने बताया कि बदलाव आधुनिकता का जरूर है लेकिन संस्कृति और परंपराओं के निभाने की पूरी ललक विवाहिताओं में साफ दिखाई दे रही है। आजकल के मॉडर्न जमाने में भी करवा चौथ त्योहार मनाने को लेकर पीढ़ी अंतराल के बावजूद कोई खास बदलाव नहीं आया है। रिश्तों और पुरानी परंपराओं को सहेजने में नई पीढ़ी भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। करवाचौथ को अधिक बल फिल्मों और टीवी धारावाहिकों से मिला है।
करवाचौथ के व्रत का अरम्भ कब से शुरू हुआ इसकी सटीक विवरण उपलब्ध नहीं है। इसका विवरण शास्त्रों, पुराणों और महाभारत में मिलता है। श्वामन पुराण में भी करवा चौथ व्रत का वर्णन मिलता है। करवा चौथ से जुड़ी अनेक कथायें भी प्रचलित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं और दानवों के साथ युद्ध से भी जुड़ा है इसका इतिहास। एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने.अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
ब्रह्मदेव ने वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। माना जाता है कि इसी दिन से करवाचौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।