झांसी, एक ओर सरकार देश के तमाम नगरों से अपने अपने घरो को वापसी कर रहे मजदूरों को रोजगार दिलाने को लेकर चिंतित है वहीं दूसरी ओर मजदूरों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने को किराये के नाम पर जमकर लूटपाट की जा रही है।
कोरोना कहर के चलते पिछले कुछ दिनों से महाराष्ट्र से वापस अपने गांव लौटने वाले मजदूरों की बाढ़ सी आ गई है। ये मजदूर विभिन्न राज्यों और अलग अलग जनपदों के हैं। सड़कों पर खड़े हुए एक ट्राला में चिलचिलाती धूप में अपने सिर को गमछों और अपने थैलों से ढके बैठे करीब 100-150 मजदूरों ने बताया कि वे सभी मुंबई से आए हैं और फैजाबाद जा रहे हैं उनमें अरशद, विनोद,सलमान और ऐसे करीब डेढ़ सौ मजदूर थे। जब उनसे पूछा गया कि क्या वे किराया देकर आए हैं तो उन्होंने बताया कि प्रति मजदूर उन्होंने 3 हजार 600 रुपये किराया दिया है। यह कथन चौंकाने वाला था। एक ट्राला में बैठे मजदूरों की संख्या करीब डेढ़ सौ थी सभी फैजाबाद जा रहे थे।
वहां से इसी शर्त के साथ ट्रक को बुक किया गया था। इस हिसाब से ट्रक मालिक के पास करीब 5 लाख 40 हजार रुपया एकत्र हुआ होगा। महाराष्ट्र में रोजगार छिनने के बाद दाने-दाने को मोहताज मजबूर मजदूरों के साथ ये कैसी ज्यादती? इसके बारे में किसी सरकार के पास कोई जानकारी या नीति नहीं है।
अपने घरों को जाने के लिए मुम्बई से फैजाबाद तक का किराया इन मजदूरों से ट्रक में लगभग 40 डिग्री तापमान पर लू के थपेड़े झेलते हुए 3600 रुपए से 4000 रुपयों तक वसूला जा रहा है। देश में कोरोना संकट के बाद सड़क पर एक ओर सामाजिक कार्यकर्ताओं की भीड़ दिखाई दे रही है।
सरकार हर हाल में मजदूरों को उनके गंतव्य तक भेजने के लिए प्रयासरत है। इसके लिए रोज नए नियमों को अमल में लाया जा रहा है लेकिन दूसरी ओर मजदूरों की मजबूरी का फायदा उठाने वाले लोगों की भी कमी नहीं है। इससे निपटने के लिए सरकार के पास शायद कोई रणनीति नहीं है। यही नहीं मजदूरों की मजबूरी है कि उन्हें किसी तरह घर पहुंचना है। और उसी का ये लाभ लेने में जुटे हैं। यह भी कालाबाजारी जैसी हरकत है। इससे निपटने के लिए भी सरकारों को कुछ सोचना होगा।