यौन उत्पीड़न के विरोध में पहली बार पीड़ितायें हुयी एकजुट, किया प्रदर्शन

नयी दिल्ली,  भारत में यौन उत्पीड़न की शिकार रहीं हजारों पीड़िताएं न्याय मांगने और अन्य पीड़िताओं के प्रति समर्थन जताने के लिये पहली बार राष्ट्रीय राजधानी जुटीं।

इस तरह की हिंसा को रोकने की मांग करते हुए देशभर से आयीं इन पीड़िताओं ने  प्रतिष्ठा मार्च में हिस्सा लिया। यह पहली बार है जब यौन उत्पीड़न की शिकार पीड़ताएं इस तरह से सामूहिक रूप से एकजुट हुईं।

यौन उत्पीड़न के इन पीड़ितों में महिलाएं और बच्चे भी थे, जो अपने-अपने जीवन में यौन उत्पीड़न को झेल चुके हैं। देश के करीब 24 राज्यों से करीब 200 से अधिक जिलों से आयीं। ये पीड़िताएं 20 दिसंबर को मुंबई से अपनी यात्रा शुरू करते हुए 1,000 किलोमीटर का रास्ता तय कर दिल्ली पहुंचीं।

अपने साथ हुए खौफनाक हादसे को याद करते हुए उज्जैन से आयी पीड़िता ने कहा कि नौकरी दिलाने के नाम पर उसकी मानव तस्करी की गयी और बलात्कार किया गया।

देश के पहले अखिल भारतीय नेटवर्क ‘द नेशनल नेटवर्क ऑफ सरवाईवर्स’ ने भारत के 25 राज्यों और 250 जिलों से आयीं 25,000 से अधिक पीड़िताओं और उनके परिजन के इस मार्च का जिम्मा संभाला और उनका मार्गदर्शन किया। पीड़िताओं के अलावा इस मार्च में देश भर से 2,000 पक्षकारों, 200 नीति निर्माता और 2,000 वकीलों ने हिस्सा लिया। रामलीला मैदान में इसका समापन हुआ।

‘राष्ट्रीय ग्रामीण अभियान, डिग्निटी मार्च’ के संयोजक आशिफ शेख ने कहा कि जब यह मार्च शुरू हुआ तब उनका उद्देश्य बच्चों और महिलाओं को प्रोत्साहित करना था कि वे बिना शर्म और झिझक के यौन उत्पीड़न के अपने अनुभवों के बारे में बात कर सकें और पीड़ितों को शर्मिंदा करने की संस्कृति को खत्म करें।

उन्होंने पत्रकारों को बताया, ‘‘यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक तरफ जहां बलात्कार के खिलाफ व्यापक गुस्सा है वहीं लाखों पीड़ित मुख्यत: बच्चे व्यावसायिक यौन शोषण और समुदाय आधारित वेश्यावृत्ति के मामलों में फंसते हैं। समाज कहता है कि उन्हें इसके लिये पैसे मिलते हैं इसलिए यह बलात्कार नहीं है। लेकिन यह लगातार बलात्कार और घृणित अपराध का मामला है।’’

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