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न्यायपालिका में दलितों, पिछड़ों की भागीदारी पर मायावती ने उठाया ये बड़ा सवाल

लखनऊ, बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश कि पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने आज न्यायपालिका में दलितों पिछड़ों की भागीदारी पर ये बड़ा सवाल उठाया है.

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मायावती ने आरोप लगाया है कि केंद्र की मोदी सरकार द्वारा न्यायपालिका को बार-बार अपमानित करने और उसे नीचा दिखाने की प्रवृत्ति रही है. मायावती ने कहा कि कार्यपालिका का न्यापालिका के साथ ऐसा विद्वेषपूर्ण बर्ताव सही नहीं है. विपक्षी पार्टियों के साथ ही देश की न्यायपालिका के प्रति भी यह केंद्र सरकार की हठधर्मी व निरंकुशता दर्शाता है. उन्होंने कहा कि केंद्रीय मंत्रालयों में उच्च पदों पर दलितों, आदिवासियों व पिछड़े वर्ग के अफसरों की तैनाती नहीं की जा रही है. ये मोदी सरकार का पूर्व की कांग्रेस सरकारों की तरह ही जातिवादी व द्वेषपूर्ण रवैया है.

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उन्होनें  कहा कि केन्द्र सरकार के मंत्री व बीजेपी के नेतागण बार-बार यह कहते हैं कि सन् 2016 में 126 जजों की नियुक्ति करके केन्द्र सरकार ने कमाल का काम किया है, लेकिन पहले 300 से ज्यादा जजों के पदों को खाली लटकाये रखना और फिर उसके बाद 126 जजों की नियुक्ति करना यह कौन सा जनहित व देशहित का काम है? इतना ही नहीं बल्कि केन्द्रीय मंत्रालयों में उच्च पदों पर दलितों, आदिवासियों व पिछड़े वर्ग के अफसरों की तैनाती नहीं करने के मामले में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार का रवैया जब कांग्रेस पार्टी की पूर्ववर्ती सरकारों की तरह ही जातिवादी व द्वेषपूर्ण बना हुआ है तब फिर न्यायपालिका में इस सरकार से इस सम्बन्ध में सकारात्मक रवैये की अपेक्षा कैसे की जा सकती है?

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मायावती ने कहा कि खुद कानून मंत्री और अन्य केंद्रीय मंत्रियों द्वारा सार्वजनिक तौर पर यह कहते रहे हैं कि केंद्रीय कानून मंत्रालय कोई डाकघर नहीं है, जो जजों की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम की सिफारिश पर आंख बंद कर अमल करता रहे. बसपा प्रमुख ने कहा कि केंद्र सरकार के इस रवैये के कारण न्यायपालिका आज अभूतपूर्व संकट झेल रही है. उन्होंने कहा कि केंद्र व राज्यों में जनविरोधी बीजेपी की वर्तमान सरकारों के खिलाफ न्यायपालिका ही एकमात्र उम्मीद की किरण है. इससे जनता के साथ विपक्षी पार्टियों के लिए न्याय की आखिरी आस बंधी हुई है.

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मायावती ने कहा कि केन्द्र सरकार के नीति-निर्धारण मामलों के साथ-साथ न्यायपालिका में भी समाज के बहुत बड़े तबके अर्थात दलितों, आदिवासियों, पिछड़े वर्गो व धार्मिक अल्पसंख्यकों का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं होने के कारण भी संविधान को उसकी सही जनहिताय की मंशा के अनुरूप देश में आज तक ढाला नहीं जा सका है. जिसके सम्बन्ध में कोई अच्छी सुधार की उम्मीद खासकर बीजेपी की वर्तमान सरकारों से कतई नहीं की जा सकती है. क्योंकि इनकी नीयत व नीति पूर्ण रूप से जनहिताय ना होकर घोर जातिवादी, साम्प्रदायिक व विद्वेषपूर्ण लगातार ही बनी हुई है और इसी कारण देश की हर लोकतांत्रिक व संवैधानिक संस्थायें आज काफी ज्यादा तनाव व संकटग्रस्त हैं. संविधान व कानून के माध्यम से सही जनसेवा करने में अपने आपको काफी ज्यादा असमर्थ भी पा रही है, जिसका सही समाधान जल्द ढूंढना आवश्यक है.
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