नई दिल्ली,उज्जैन के महाकाल मंदिर की तर्ज पर अब वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में भी ड्रेस कोड लागू किया है. निर्धारित ड्रेस कोड के मुताबिक मंदिर में काशी विश्वनाथ के स्पर्श दर्शन के लिए अब पुरुषों को धोती -कुर्ता और महिलाओं को साड़ी पहनना होगा. इन्हीं पारंपरिक वस्त्रों के धारण करने के बाद ही काशी विश्वनाथ को स्पर्श किया जा सकेगा.
पैंट-शर्ट, जींस, सूट, टाई कोट आदि सिला हुआ कपड़ा पहनकर आने वालों को गर्भगृह में प्रवेश तो मिलेगा लेकिन शिवलिंग का स्पर्श नहीं कर सकेंगे। केरल के प्रसिद्ध पद्मनाभस्वामी मंदिर में सिला हुआ वस्त्र पहनकर आने वालों को गर्भगृह में भी प्रवेश नहीं मिलता है।
काशी विद्वत परिषद और प्रदेश के धर्मार्थ कार्य मंत्री डॉ. नीलकंठ तिवारी के बीच रविवार को कमिश्नरी सभागार में हुई बैठक में इस पर सहमति बनी। विद्वत परिषद ने काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग स्पर्श के लिए मध्याह्न भोग आरती से पूर्व तक का समय शास्त्र सम्मत माना है। भक्तों को पूर्वाह्न 11 बजे तक बाबा के स्पर्श का अवसर मिलेगा।
पिछले साल सावन में गर्भगृह में प्रवेश पर ही रोक लगा दी गई थी। भारी भीड़ को इसका कारण बताया गया था। सावन बीतने और भीड़ कुछ कम होने पर 23 अगस्त से एक घंटा गर्भगृह में जाने की छूट मिलने लगी। इस दौरान बाबा के शिवलिंग को स्पर्श करने का भी मौका मिलता है। शाम में सप्तर्षि आरती के पहले एक घंटे तक बाबा का स्पर्श और गर्भगृह में दर्शनार्थी जा सकते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। काशी खण्ड पुस्तक में स्पष्ट वर्णित है कि जीवनपर्यन्त समस्त शिवलिंगों की आराधना से जो पुण्य मिलना कठिन है, वह पुण्य श्रद्धापूर्वक केवल एक ही बार विश्वेश्वर के पूजन से शीघ्र मिल जाता है। इसके स्पर्श मात्र से राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इसके दर्शन मात्र से तत्वज्ञान का प्रकाश होता है। काशी खण्ड में वर्णित है कि काशी में एक तिल भूमि भी लिंग से रहित नहीं है। काशी खण्ड के त्रिस्थली सेतु के अनुसार विश्वेश्वर के दर्शन के बाद प्राणी कहीं भी शरीर छोड़े तो अगले जन्म में मोक्ष का भागी हो जाता है।
मान्यता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, मर्हिष दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास आदि समयाकाल के दिग्गजों ने बाबा धाम में शीश नवाया है। यही पर सन्त एकनाथजीने वारकरी सम्प्रदाय का ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत को पूर्णतया दी थी।